tag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post7032775461657218651..comments2023-10-30T15:07:23.924+05:30Comments on अंतर्नाद : लडकियां चोटी बांधना भूलती जाती थींओम आर्यhttp://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-43085218273072059542011-01-27T11:32:12.312+05:302011-01-27T11:32:12.312+05:30दर्पण ने इसे ब्लॉग की सबसे बेहतर कविता बताया अपने ...दर्पण ने इसे ब्लॉग की सबसे बेहतर कविता बताया अपने फेसबुक प्रोफाइल पर , तो फिर पढने आना ही पड़ा और अब कह सकता हूँ कि ये कोई अतिशयोक्ति नहीं थी ..यथार्थवाद किस हद तक सुन्दर हो सकता है , ये आपकी कविता पढने से मालूम होता है ..DChttps://www.blogger.com/profile/02011311076382006162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-92199019455184065332011-01-26T19:06:36.074+05:302011-01-26T19:06:36.074+05:30एक सोच को लिबास .मिला है .....ओर .एक गुस्से को आवा...एक सोच को लिबास .मिला है .....ओर .एक गुस्से को आवाज.....<br /> कितना कुछ है आस पास नजरअंदाज करने को...... जानबूझ के आँख मूँद ने को ....दो चोटिया वाली लड़की रोज कितनी आवाजो को अनसुना करती है .....कितनी नजरो को अपनी पीठ पर चिपका कर चलती है .....<br />ये कविता आज का रिफ्लेक्शन है ....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-26223211072586475082010-05-03T23:54:32.478+05:302010-05-03T23:54:32.478+05:30ओमजी.. अब तक मैंने आपके ब्लॉग के बारे में सुना ही ...ओमजी.. अब तक मैंने आपके ब्लॉग के बारे में सुना ही था.. आज पढ़ने का मौका भी मिल गया.. बहुत उम्दा और भावनात्मक कविता है.. बधाई हो आपको..अबयज़ ख़ानhttps://www.blogger.com/profile/06351699314075950295noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-44373033919920919822010-04-26T13:56:48.980+05:302010-04-26T13:56:48.980+05:30Satya Vachan magar Apoorv tak yeh baat pahunche !!...Satya Vachan magar Apoorv tak yeh baat pahunche !!!सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-18591154597314255462010-04-26T12:27:51.228+05:302010-04-26T12:27:51.228+05:30@अपूर्व
अपूर्व एक ऐसे चिठ्ठाकार हैं जो अपनी टिप्पण...@अपूर्व<br />अपूर्व एक ऐसे चिठ्ठाकार हैं जो अपनी टिप्पणियों से रचना करते हैं और मुझे तो कई बार उनकी टिप्पणियों के बाद कविता के कई नए आयाम खुलते दिखाई देते हैं. खासियत यह है कि वे तब तक टिप्पणी करते भी नहीं..जब तक कि पूरी तरह रचना पर गहन विचार न कर लें. मैं मन में हमेशा धन्यवाद करता हूँ उनका..आज सोंचा, शब्दों में कर लूं.ओम आर्यhttps://www.blogger.com/profile/05608555899968867999noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-736968795824411732010-04-25T23:12:30.621+05:302010-04-25T23:12:30.621+05:30कहते हैं ना कि किसी पहाड़ी की चोटी से किसी झाड़ के स...कहते हैं ना कि किसी पहाड़ी की चोटी से किसी झाड़ के सहारे लटके इंसान को गहरी खाई मे गिर कर समा जाने के लिये हवा का एक झोंका ही काफ़ी होता है..आपकी कविता पर आदरणीय संध्या जी की प्रतिकविता हवा का ऐसा ही झोंका है..कातिल!अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-56600911392335852962010-04-25T23:07:25.913+05:302010-04-25T23:07:25.913+05:30कविता शुरू करने के बाद आगे पढ़ते-पढ़ते जैसे किसी मूक...कविता शुरू करने के बाद आगे पढ़ते-पढ़ते जैसे किसी मूक स्लाइड-शो की तरह लगती रही जिसमे फ़्रेम-दर-फ़्रेम दृश्य स्वतः तेजी से बदलते जाते हैं..और कविता की विषयसमृद्धि से चमत्कृत और कुछ कन्फ़्यूज्ड भी होता रहा..मगर अंतिम पंक्तियाँ तो जैसे ग्यारह हजार वोल्टेज के तार की तरह जेहन से छू गयीं..सच इतना निर्मम..मारक!..और इसी के साथ फिर पढ़ने पर प्रथम पंक्तियों का निहितार्थ समझ आता है..और पसीजने के पानी की कमी भी..!<br />सच हर पंक्ति अपने मे इतना सजीव और व्यंग्यात्मक विरोधाभास समेटे है कि कविता की माला तोड़ कर अलग-अलग मोती चुगने का जी चाहता है..<br />शानदार कहना काफ़ी नही होगा कविता के लिये..इसको फिर-फिर पढ कर मनन करना ही इसकी अर्थवत्ता को स्वीकार करना है..आपकी सबसे परिपक्व कविताओं मे से एक..निःसंदेहअपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-87477246990823764932010-04-25T12:16:52.147+05:302010-04-25T12:16:52.147+05:30आपका जवाब नहीं........
बहुत खूब !!आपका जवाब नहीं........<br />बहुत खूब !!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13680139649745437697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-82764682192406486372010-04-25T00:40:55.326+05:302010-04-25T00:40:55.326+05:30वाह भई आर्य जी , बहुत सुंदर रचना हैवाह भई आर्य जी , बहुत सुंदर रचना हैKajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-88252198649175182872010-04-24T19:47:00.120+05:302010-04-24T19:47:00.120+05:30वाह ओम जी,वाह!वाह ओम जी,वाह!ktheLeo (कुश शर्मा)https://www.blogger.com/profile/03513135076786476974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-38174345612263266142010-04-24T09:13:22.859+05:302010-04-24T09:13:22.859+05:30हम सब खड़े हैं हृदय खोले इन कविताओं की सराहना में !...हम सब खड़े हैं हृदय खोले इन कविताओं की सराहना में ! <br />अदभुत रचते हैं भाई ! आभार ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-73228114546249064832010-04-23T17:01:17.688+05:302010-04-23T17:01:17.688+05:30किसी की जान बार-बार नहीं लेनी चाहिएकिसी की जान बार-बार नहीं लेनी चाहिएसागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-73587052485398940602010-04-23T17:00:51.150+05:302010-04-23T17:00:51.150+05:30क्या लिख रहे हैं आजकल कुछ पता भी है ?क्या लिख रहे हैं आजकल कुछ पता भी है ?सागरhttps://www.blogger.com/profile/13742050198890044426noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-9255278576927202132010-04-23T14:10:42.292+05:302010-04-23T14:10:42.292+05:30आपकी रचनाओ को पढ्कर ........मानस पर कुछ भाव ऐसे ही...आपकी रचनाओ को पढ्कर ........मानस पर कुछ भाव ऐसे ही दस्तक दे जातेहै जो समाज मे घटित हो रहे होते है हमारे आस पास..... जिनसे रुबरु हम से कई लोग होते है अकसर .........जिनसे इंकार नही किया जा सकता .......एक छोटी सी कोशिश........ <br /><br /><br /><br />अक्सर वह छेड दी जाती थी तकलिफो से<br />जिसे वह सहती आयी थी<br />पृथ्वी की शुरुआत से<br /><br />दर्द की आग ने उसे <br />पिघला दिया था<br />उड रहे थे कुछ रिश्ते <br />गर्म होकर उसके अंदर से बाहर आकर <br /><br />उसे यह नही पता था कि <br />मानविय रिश्ते जो समाज से बनती है <br />उसमे अपने और पराये मे <br />बहुत अंतर होती है <br /><br />प्यार जिसमे वह डुबना चाहती थी<br />उसे समझा नही पायी थी<br />उन समाजिक रिश्तो को<br />समझाने की शिक्षा <br />समाज से बखूबी मिली थी <br />पर कुछ लोग नसमझ पाने <br />के आदत से लाचार थे <br />थोप देते थे <br />कुछ भी अपनी मर्जी से<br /><br /><br />वह एक लड्की थी जिसे <br />अपने घर के लिये कमाना था बहुत सारा इज्जत <br />उसे निवाहना था उन विसन्गतियो को अकेले ही<br />जो ससुराल से दहेज मे मिला था<br />लड्नी थी एक और लडाई<br />पत्ति के प्यार के वास्ते <br />वह भी एक ऐसी जगह थी जहाँ <br />कोई भी चीज मानविय आधार पर नही मिलती थी <br /><br /><br />वह कुछ काल खंडो से खिसक चुकी थी <br />किसी दिन वह तरल हो गयी थी <br />दर्द की उमस से <br />एक रुह उससे होकर कभी गुजरी थी<br />जिसमे वह जम गयी<br />पृथ्वी सी शितलता का एहसास लिये हुये थीसंध्या आर्यhttps://www.blogger.com/profile/12304171842187862606noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-86289691921374636512010-04-23T08:18:41.202+05:302010-04-23T08:18:41.202+05:30स्कूली युनिफोर्म पहने बच्चे
ढाबों पे चाय पिलाते थे...स्कूली युनिफोर्म पहने बच्चे<br />ढाबों पे चाय पिलाते थे<br />या साईकिल की दुकानों पे<br />पंक्चर ठीक करते थे,<br /><br /><br /><br />अत्यंत भावपूर्ण रचना...ओम जी इस सशक्त कविता की प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ..विनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-42263659530379256592010-04-23T05:36:17.577+05:302010-04-23T05:36:17.577+05:30हर लाइन अलग अलग चित्र प्रस्तुत करता हूआ है, पर मतल...हर लाइन अलग अलग चित्र प्रस्तुत करता हूआ है, पर मतलब एकदम साफ..बेहतर रचना लिखी है......अपने अंदर के डार्क जोन का क्या कहें.Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-276959527449255822010-04-22T22:23:21.612+05:302010-04-22T22:23:21.612+05:30सरकार को जब भ्रष्टाचार करना होता था
तो वो विकास की...सरकार को जब भ्रष्टाचार करना होता था<br />तो वो विकास की परियोजनाएं लाती थीं<br />वाकई कितना विरोधाभासी दुनिया है<br />सुन्दर रचनाM VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-13873854990680776222010-04-22T15:33:56.328+05:302010-04-22T15:33:56.328+05:30आम जनों में यह बात फ़ैल गयी थी
कि पढ़-लिख कर आदमी ...आम जनों में यह बात फ़ैल गयी थी<br />कि पढ़-लिख कर आदमी बेकार हो जाता है<br />वाह!! लीक से हट कर लिखी गई कविता. सुन्दर.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-52005629581282211802010-04-22T15:06:18.438+05:302010-04-22T15:06:18.438+05:30पहले पढ़ा तो लगा उलझ गई ,एक एक तिनका जोड़ा तो तस्वीर...पहले पढ़ा तो लगा उलझ गई ,एक एक तिनका जोड़ा तो तस्वीर साफ़ हो गई ,बहुत खूबsonalhttps://www.blogger.com/profile/03825288197884855464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-5951524129235250412010-04-22T13:21:48.949+05:302010-04-22T13:21:48.949+05:30दिल खुश हो गया ये कविता पढ़कर....वाकई क्या लिखा है...दिल खुश हो गया ये कविता पढ़कर....वाकई क्या लिखा है!pallavi trivedihttps://www.blogger.com/profile/13303235514780334791noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-60326467233314745322010-04-22T12:29:26.754+05:302010-04-22T12:29:26.754+05:30ॐ भैया .....मैंने भी पढ़ ली जिंदगी की असल कविता ......ॐ भैया .....मैंने भी पढ़ ली जिंदगी की असल कविता ..................आपको पढ़कर बेशक अच्छा इंसान हो पाउगा एक दिन ................आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq'https://www.blogger.com/profile/01695360902881473207noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-54673033392170516692010-04-22T12:18:15.169+05:302010-04-22T12:18:15.169+05:30सेल्यूट मार लु क्या इस पर..
झन्नाटेदार लिखा है आपन...सेल्यूट मार लु क्या इस पर..<br />झन्नाटेदार लिखा है आपने.. बदतर होती ज़िन्दगी को भी अंतिम सांस तक जिए जाने की ललक.. पर जो जी रहे है उसमे ज़िन्दगी का अनुपात कितना है.. ? कुछ भी तो नहीं.. !कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-44518435906218806672010-04-22T12:10:01.998+05:302010-04-22T12:10:01.998+05:30लडकियां चोटी बांधना भूल जातीं थीं.....
ओह! हो......लडकियां चोटी बांधना भूल जातीं थीं.....<br /><br />ओह! हो.... पर क्यूँ ? <br /><br />हे हे हे हे ..... <br /><br />चलिए यह तो एक हल्का मज़ाक रहा.... पर बहुत ही संवेदनशील कविता लिखी आपने.... बहुत अच्छी लगी...डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-4348414473824529472010-04-22T11:03:04.261+05:302010-04-22T11:03:04.261+05:30Ateet ,wartmaan aur anagat...ek vistrut canvas ,ji...Ateet ,wartmaan aur anagat...ek vistrut canvas ,jispe mano wishw kee tasveer hame dikhayi deti hai..kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7767988490719036904.post-89338219689978201252010-04-22T08:56:32.023+05:302010-04-22T08:56:32.023+05:30बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भ...बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.com