जब तुम घोंप आये
उसकी पीठ में छुरा
मैंने देखा
उसके खून में पानी बहुत था
जिन मामूली जरूरतों को लेकर
तुम घोंप आये छुरा
उन्ही जरूरतों ने
कर दिया था उसका खून पानी
**
तुम बार-बार खोओगे
विश्वास
कहीं सुरक्षित रख के
वे इधर-उधर हो जाते हैं
रोजमर्रा की
कुछेक जरूरी चीजों के हेर-फेर में
***
बहुत तेजी से
बदल रही हैं कुछ जरूरतें
सपनो में
जैसे घर एक जरूरत था पहले
पर अब एक सपना है
****
वक्त भाग कर
जल्दी-जल्दी दिन गुजारता है
जब उसे
इक रात की जरूरत होती है
और रात
नींद की जरूरत में
वक़्त को सो कर गुजार देती है
*****
उसकी पीठ में छुरा
मैंने देखा
उसके खून में पानी बहुत था
जिन मामूली जरूरतों को लेकर
तुम घोंप आये छुरा
उन्ही जरूरतों ने
कर दिया था उसका खून पानी
**
तुम बार-बार खोओगे
विश्वास
कहीं सुरक्षित रख के
वे इधर-उधर हो जाते हैं
रोजमर्रा की
कुछेक जरूरी चीजों के हेर-फेर में
***
बहुत तेजी से
बदल रही हैं कुछ जरूरतें
सपनो में
जैसे घर एक जरूरत था पहले
पर अब एक सपना है
****
वक्त भाग कर
जल्दी-जल्दी दिन गुजारता है
जब उसे
इक रात की जरूरत होती है
और रात
नींद की जरूरत में
वक़्त को सो कर गुजार देती है
*****
15 comments:
Phir ek baar gazab kiya hai aapne!
बहुत सुंदर रचना !!!
उन्ही जरूरतों ने
कर दिया था उसका खून पानी
nice................................
har ek kashanika bahut sundar hai ...aur mujhe khas taur pe pehli aur akhir wali pasand aayi .... realistic approch liye hue hai aap ki poetry ....
तुम बार-बार खोओगे
विश्वास
कहीं सुरक्षित रख के
वे इधर-उधर हो जाते हैं
रोजमर्रा की
कुछेक जरूरी चीजों के हेर-फेर में
सबसे अच्छी यही लगी.....
आपका ब्लॉग कुछ प्रोब्लम कर रहा है .पूरा नहीं खुलता है .....देखिएगा जरा .....टिपण्णी करने में परेशानी हो रही है
बेहतरीन लगी !!!
ओम जी
हर बार एक अलग ही रंग लिये होती हैं आपकी रचनायें।
har shanikha khoobsurat gehre rango se sajayi hai.
badhayi.
जिन जमीनो पर कभी
फूलो के बहार होते थे
आज कचरा से भरा पडा है
सडांधो के अधिकार मे है
हमारे जमीन और जमीर
ऐसी प्रदूषण की उफ्फ्फ्फ्फ्!
"जरूरतें होने लगती हैं
सपनों पर हावी
पर विश्वास
जिन्दा रखता है
सपनों को भावी....."
या
" जरूरतें होने लगती है
हावी--- सपनो पर ...
और विश्वास जिन्दा रहता है
भावी सपनों पर .....
आर्य जी
बहुत सुन्दर रचनाएँ हमेशा की तरह......!ये छोटी छोटी कवितायेँ बहुत मारक असर रखती हैं.....
ओम ॐ भैया .............बहुत दिनों बाद मैं फिर से ब्लॉग पर जिंदा हुआ हूँ .............और क्या पढ़ रहा हूँ ...............ज़रूरते ...........विश्वाश और सपना ....................@ आपकी कलम से ,नहीं मालूम जिंदगी मेरा सपना हैं याकि ज़रूरत ............पर जितने दिन मैं ब्लॉग (मुख्य धारा) से दूर रहा ये विश्वाश अवश्य था की आपकी कलम जिंदगी को ज़रूर लिख रही होगी ..............प्यारे ॐ भैया ...........प्रणाम .............आप बहुत ज़हीन हो यार .......और पता हैं मेरा आपके साथ होना नितांत ज़रूरी हैं ........दिलकश और खुबसूरत इरादों को हमेशा नज़र से बचना चाहिए .......थोडा सा काला कपड़ा या काला जूता baandh देते हैं न ऐसे ही मैं भी आपकी कला का काला जूता हूँ ..........
वक्त भाग कर
जल्दी-जल्दी दिन गुजारता है
जब उसे
इक रात की जरूरत होती है
और रात
नींद की जरूरत में
वक़्त को सो कर गुजार देती है
और हम अपनी आपाधापी मे दिन-रात की इस चक्की के बीच पिसते रहते हैं..जिंदगी गुजर जाती है...
बेहतरीन कविताएं
ओम जी
हर बार एक अलग ही रंग लिये होती हैं आपकी रचनायें।
सुंदर! प्रभावशाली! मन को भेदने वाली!
Post a Comment