Tuesday, May 26, 2009

जितना भी तुमने छुआ है मुझे !

मैं रोज जी लिया करूंगा
अपनी हथेली पे
स्पर्श तेरी हथेली का

हथेली पे घटित हुआ वो स्पर्श
रोज घटा करेगा हथेली पे

तुम्हारी वो छुअन
कभी नर्म धुप की गुनगुनी रजाई
और कभी भींगी हुई भदभदाती बारिश

कभी फुर्सत में गुफ्तगू करता पूनम का चाँद
कभी पहाडों से बहकर आती हुई बयार की गुदगुदाती खुशबू

और कभी ...
उदास लम्हों में लबों पे हरकत करती
एक जिन्दा मुस्कान भी

टिका रहेगा वो स्पर्श हमेशा मेरे शाख के पत्तो पर

तुमने जितना भी मुझे छुआ है
उसकी लचक को जिस्म पे पहन के
मैं हमेशा बना रहूँगा बसंत
ये वादा
मैं कर देना चाहता हूँ तुम्हारे जाने से पहले.

13 comments:

श्यामल सुमन said...

हो वसंत जीवन अगर मिलने से स्पर्श।
मेरी कामना आपको मिल जाये उत्कर्ष।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

संध्या आर्य said...

एक प्यार जिसको आप जीते हो,जिसमे सिर्फ यादे है पर जीवित!

लोकेन्द्र विक्रम सिंह said...

वाह सुन्दर अभिव्यक्ति और खूबसूरत वादा.....

Udan Tashtari said...

सुन्दर रचना!१

●๋• सैयद | Syed ●๋• said...

खूबसूरत अहसास ...

Sajal Ehsaas said...

jitne comparisons kiye hai sab bahut achhe hai...masoom hai,komal hai...imaandaar hai...bahut achhi rachna :)

www.pyasasajal.blogspot.com

Yogesh Verma Swapn said...

तुमने जितना भी मुझे छुआ है
उसकी लचक को जिस्म पे पहन के
मैं हमेशा बना रहूँगा बसंत
ये वादा
मैं कर देना चाहता हूँ तुम्हारे जाने से पहले.


sunder abhivyakti.

vandana gupta said...

khoobsoorat ahsaas hain aapke...........kuch aise jaise aapne samne bithakar apne pyar ko bayan kiye hon.

सन्ध्या आर्य् said...

कभी फुर्सत में गुफ्तगू करता पूनम का चाँद
कभी पहाडों से बहकर आती हुई बयार की गुदगुदाती खुशबू...........

बहुत बहुत खुबसूरत पंक्तियाँ है .........गुफ्तगू और पूनम का चाँद..........पहाडी बयार...गुदगुदाती हुई.....क्या बात है........लाजबाव


शब्द और भाव दोनो ही आपके प्यार की गहराई को बहुत ही सलीके से बयान करते दीखते है.

रंजना said...

इस सुन्दर भावाभिव्यक्ति ने तो मन ही मोह लिया .....वाह ! वाह ! वाह !

बहुत ही सुन्दर रचना.....

M Verma said...

बहुत खूबसूरत वादा ----
भावनाओ की यह खूबसूरती देखते बनती है
बधाई

डिम्पल मल्होत्रा said...

main bna rahunga bsant......boht khubsurat kavita me khubsurat vada...

***Punam*** said...

आपके ब्लॉग पर देर से आने का अफ़सोस कि इतने अच्छी रचनाओं से इतने दिनों तक वंचित रही....पर देर आये दुरुस्त आये वाली कहावत याद आई....एक ही जगह अपनी सारी रचनाओं की तारीफ को समेट लें...बहुत अच्छे शब्दों से बहुत अच्छी अभिव्यक्ति....



"तुमने जितना भी मुझे छुआ है
उसकी लचक को जिस्म पे पहन के
मैं हमेशा बना रहूँगा बसंत
ये वादा
मैं कर देना चाहता हूँ तुम्हारे जाने से पहले."



शुक्रिया..