कहीं कोई मुककमल मोकां नही है
जहाँ में कहीं भी चैन-ओ-आराम नही है.
तुमने मसला उठाया है तो कह देता हूँ
हम आशिकों से ज़्यादा कोई गुलफाम नही है.
जिस साहिल के बदन पे समंदर अंगराईयाँ लेता है
उस साहिल की भी कोई खुशनुमा शाम नही है
आज फिर उनके जानिब से ना कोई पैगाम आया
आज फिर दिल को कोई काम नही है.
जब तक चाहोगे बहेंगे तेरे समंदर पे
इस तिनके का और कोई दरिया-ए-जाम नही है.
एक और आख़िरी कोशिश कर के देखेंगे ज़रूर
इश्क के घर पहुँचना है कोई मंज़िल-ए-आम नही है.
6 comments:
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है
बहुत अच्छी रचना मन तक महसूस कर सकी
गार्गी
एक और आख़िरी कोशिश कर के देखेंगे ज़रूर
इश्क के घर पहुँचना है कोई मंज़िल-ए-आम नही है. ...boht khub....
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति !
ओम जी बहुत अच्छा प्रयास है...लिखते रहिये....
नीरज
आज फिर उनके जानिब से ना कोई पैगाम आया
आज फिर दिल को कोई काम नही है.
जब तक चाहोगे बहेंगे तेरे समंदर पे
इस तिनके का और कोई दरिया-ए-जाम नही है.
बहुत अच्छी रचना
एक और आख़िरी कोशिश कर के देखेंगे ज़रूर
इश्क के घर पहुँचना है कोई मंज़िल-ए-आम नही है.
sahi jaa rahe ho omji, bahut achchi lagi ye panktiyan.
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