Sunday, March 13, 2011

मैं चाहता हूँ अपना अंकुरण

जहाँ से संगीत उठता है
और धीरे-धीरे चढ़ता है पहाड़
और कभी-कभी अचानक भी
उस तार में छेड़ कर छोड़ दिया जाऊं
झंकृत
और बजूँ पृथ्वी के घुमने तक

आत्मा जो सो गयी है
खो गयी है
नहीं पहुँच पाती मेरी भी आवाज उस तक
रोम-रोम में भर सकूं इतना उत्ताप
कि हो जाए कुण्डलिनी उसकी
जागृत
और फिर न सोने दूं उसको कभी

सांस खींचूँ तो
असीम ऊर्जा का हो आलिंगन
एक बार तो फूटे ये जिस्म

किसी कवच के भीतर जकड़ा हुआ
मैं चाहता हूँ अपना अंकुरण

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9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बीज जब बढ़ने को आता है, आवरण तोड़ डालता है।

kshama said...

Soch rahee thee ki,bade din hue aapne kuchh likha nahee...! Aur aaj ye zabardast rachana!Wah!

***Punam*** said...

सही कहा आपने....
आत्मा जब सो जाए तो जगाना बहुत मुश्किल है !
कवच के भीतर अंकुर के प्रस्फुटन के इन्तजार में न जाने कितनी आत्माएं सो रही हैं आजतक...!!
शायद हम सभी की......... !!!
सुन्दर अभिव्यक्ति....!!!

वाणी गीत said...

किसी कवच के भीतर अंकुरण कैसे संभव होगा ...
उसे तो खुला आसमान , खिली धूप चाहिए !

Udan Tashtari said...

कितनी सटीक रचना...बहुत अच्छा लगा.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

विचार करने योग्य रचना

निर्मला कपिला said...

बहुत दिनो बाद अच्छी कविता पढी है।अजकल कम लिख रहे हैं क्या बात है? बहुत मुश्किल है आत्मा के लिये कुछ कहना और महसूस करना। चिन्तन परक रचना के लिये बधाई।

sonal said...

कितनी कसमसाहट होती है ना .... अन्दर बाहर झंझावात

संध्या आर्य said...

बचपन से एक आदत रही कि
आंखो को बंद करना
और अंधेरे को देखना
तब मुझे यह नही पता था कि
यही वह प्राण है
जिसे पकडने की
कोशिश सब करते है
बडे होने पर

बंद आंखो की अंधेरी गलियो में
कई एक चित्र दिखायी देती
जो बडे ही विचित्र होते थे
ध्यान से देखने की कोशिश करती कि
कौन कौन से चित्र बनते है
पर पकड नही आते थे
वे सब ऊपर उडते हुये दिखते
और एक ऊचाई पर जाकर
फिर उसी जगह से उडने लगते
पर उन्हे देखना बडा ही अच्छा लगता

जब भी पूछती माँ से
वह बताती कि
वे सब
वो प्राण है
जो शरीर छोड चुके है
और वह भगवान के घर जा रहे है

आज मै इसी तरह कुछ
ध्यान में
सांसो को देखती हूँ पर
वो विचित्र चित्र नही दिखायी पडते
सिर्फ और सिर्फ सांस की गति ही देख पाती हूँ
इनकी लम्बाई और गहराई को माप पाती हूँ
और घण्टो कोशिश करती हूँ
कि वे सब चित्र आये
जो बचपन में मेरे सांसो में आते थे !!