कविता...तेरे शहर में फिर आसरा ढूंढने निकला हूँ!
ऐसी विरह ...आने वाले सुहाने मौसम से डर लगता होगा ना
संशय नहीं तो विकल्प कैसा!!और फिर प्यार एकमुश्त ही लगाई जाती है
बारिश का मौसम और उदास कविता... साथ साथ चलते हैं!
वाह!
घनीभूत विरह पीड़ा।
gehri rachna
"मुझे अफ़सोस हैसारा प्यार मैंने एक जगह ही लगा दियानहीं रख मैंने तुम्हारे सिवा कोई दूसरा विकल्प "मुझे क्या पता था कि बारिशें होती रहेंगी आगे तुम्हारे बिना भी......"और जब कोई विकल्प न हो तो यूँ ही बारिश में भींगने का मज़ा कुछ और ही हो जाता है...!!just excellent..!
kitna khoobsurat likhte the aap
Post a Comment
8 comments:
ऐसी विरह ...आने वाले सुहाने मौसम से डर लगता होगा ना
संशय नहीं तो विकल्प कैसा!!
और फिर प्यार एकमुश्त ही लगाई जाती है
बारिश का मौसम और उदास कविता... साथ साथ चलते हैं!
वाह!
घनीभूत विरह पीड़ा।
gehri rachna
"मुझे अफ़सोस है
सारा प्यार मैंने एक जगह ही लगा दिया
नहीं रख मैंने
तुम्हारे सिवा कोई दूसरा विकल्प "
मुझे क्या पता था
कि बारिशें होती रहेंगी आगे
तुम्हारे बिना भी......"
और जब कोई विकल्प न हो तो
यूँ ही बारिश में भींगने का मज़ा
कुछ और ही हो जाता है...!!
just excellent..!
kitna khoobsurat likhte the aap
Post a Comment