वह बिस्तर के दूसरी तरफ बैठी है
मैं लेटा हुआ हूँ
वह कई बार आयी है
और इसी तरह बैठ कर गयी है बिस्तर के कोने पे
मैंने लेटे-लेटे कई बार बुलाया है उसे
घर की आवाजें बहुत देर खड़ी रह कर थक गयी है
और अब बैठी है
रौशनी गला दबा कर बीच-बीच में चीखती है
काफी देर हो गयी है
हम एक-दूसरे को पहचान नहीं पाते
बाहर आसमान में रात से हीं घने हो रहे हैं बादल
मैं जानता हूँ
उसे आते-आते देर हो जायेगी
और तब तक बारिश को हो जाना है
_____________
मैं लेटा हुआ हूँ
वह कई बार आयी है
और इसी तरह बैठ कर गयी है बिस्तर के कोने पे
मैंने लेटे-लेटे कई बार बुलाया है उसे
घर की आवाजें बहुत देर खड़ी रह कर थक गयी है
और अब बैठी है
रौशनी गला दबा कर बीच-बीच में चीखती है
काफी देर हो गयी है
हम एक-दूसरे को पहचान नहीं पाते
बाहर आसमान में रात से हीं घने हो रहे हैं बादल
मैं जानता हूँ
उसे आते-आते देर हो जायेगी
और तब तक बारिश को हो जाना है
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5 comments:
Uf! Raushanee kee cheenkh bhee kaisee hotee hogee?
Namskar Om Ji ,
akpi rachnayein dil ko shu leti hein.... ek alag andaz hein aapka.
मन की तड़प का सुन्दर शब्दों में बयां........बधाई ....बहूत सटीक रचना ....
बहुत कुछ कह दिया हमेशा की तरह्।
घुमड़ रहे बादल बरसेंगे,
शीत मिलेगी तो बरसेंगे।
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