मैं बारिश होता हूं जो
तो वह बाढ़ हो जाती है
इस लिए नहीं कि वह मुझे बहा ले जाए
बल्कि इसलिए कि मेरे पानी के लिए कोई रास्ता हो
उसके लिए
भीगने के
कुछ अलग ही मायने हैं
दिन हफ्ते और महीने में
लगभग अनगिनत बार
वह छू लेती है
अपनी भरी आंखों से
मेरी मिट्टी को
जहां उसने
एक के बाद एक पौधे लगाते हुए
लगभग सब कुछ हरा कर दिया है
मटमैले, पीले और उदास से रंगों को काट-छांट कर
उतना आह्लादित होते हुए
मैंने नहीं देखा किसी को कभी
किसी पहाड़ को भी नहीं जब वह जगता है सुबह-सुबह
किसी नदी को भी नहीं जब वह लगने को होती है सागर के गले
या फिर किसी घास को हल्की बारिश के बाद
जितना कि
वह हो जाती है एक पौधा रोप कर
मेरे इर्द-गिर्द
कुछ एक वाहियात चीजों के खातिर
मुझसे लड़ी जाने वाली लड़ाइयां
उसके लिए
मेरी ख्वाहिशों को
अपने लिविंग रूम में
करीने से सजा कर रखने का बस एक तरीका भर है जहां मेरा बैठना उसका सुकून हो
उसके बेतरतीब होने में एक तारतम्य है
यहां वहां बिखरी-बिफरी चीजें भी
मिनटों में कब करीने से लग जाती हैं
मैं नहीं समझ पाता
थाप उल्टे सीधे जैसे भी पड़े
सुर सध जाते हैं, मंच सज जाता है
और हर बार बेहतरीन प्रदर्शन
और फिर तालियों की गड़गड़ाहट से भरा
चमचमाता चेहरा
अपने आईने में बार-बार देखती है
वह अपने दिन भर की अपनी चहलकदमी से
घर की दीवारों को गर्म रखती हैं
और बाहर की हवाओं को साफ
होती हुई शाम में
वह दीए की रोशनी हो जाती है
जहां मंत्रोच्चार और घंटियों की आवाजें हैं
जाड़े की किसी रात को वह पकाती जा रही है टमाटर का शोरबा
और मैं पढ़ता जा रहा हूं
उसमें कविताओं का स्वाद!
3 comments:
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