तुम बताओ अपना हम अपना क्या बताएं!
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जब तुम पूछते हो हमारा हाल और हम कहते हैं कि हम ठीक हैं
तो हमें सही सही पता नहीं होता कि हम कितने ठीक हैं
और ना ही तुम्हें पता चल पाता होगा कि हम कितने ठीक हैं जब हम बताते हैं
कोई पूछता है तो बिल्कुल सही सही नहीं
पर एक हद तक हम आकलन कर लेते हैं कि सामने वाले को
अपने ठीक होने के बारे में कितने संक्षिप्त या विस्तार से बताना है
और वह इस बात पर भी निर्भर करता है कि हाल किस तरह पूछा छा गया है
या पूछने वाला कौन है
यह अजीब समय है
कि इस समय में खैरियत पूछना और जानना कितना जरूरी हो गया है हर किसी के बारे में
पर उतना ही मुश्किल हो गया है जानकर कुछ कर पाना
संवेदनाएं कोई वस्तु नहीं है
कि उन्हें ऑनलाइन भेजा या मंगाया जा सके,
उन्हें बिना गले लगे या लगाए,
अप्रत्यक्ष रूप से, पहुंचाने या प्राप्त करने का कोई तरीका अभी सामने नहीं आया है
पर हम किसी तरह इमोटिकॉन्स के सहारे चला रहे हैं अपना काम
पर सदमे के लिए नहीं बना है अभी तक कोई इमोटिकॉन भी
जब सब कुछ जज्बात में धंसा हुआ सा होता है
एक तरफ हम पर
सकारात्मक बने रहकर अपने दुखों को इग्नोर करते रहने का बोझ है
और दूसरी तरफ
हम इतने दुखों में शामिल हैं कि शामिल होने के लिए दुख कम पड़ रहे हैं!
© ओम आर्य
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