Saturday, January 31, 2009

बस एक और किश्त धुप के लिए !

एक मुश्त देखा नही तुझे कभी भी
बस किश्तों में देखा है
थोड़ा-थोडा

ठीक से याद भी नही
कब-कब और
कहाँ-कहाँ
पर तेरा चेहरा याद्याश्त के चप्पे-चप्पे पे है

तुम्हारा चेहरा कहीं से भी झांक जाता है ...
जैसे सफर के दौरान
बस या ट्रेन की खिड़की से,
बगीचे में पानी डालते समय फूल से
या फिर कहीं और से

तुम कहीं भी मिल जाती हो ...
नुक्कड़ पे शाम के धूंधलके में,
सुबह-सुबह सर्दी की धुन्ध में
कभी जब मैं बरामदे में बैठा
मुँह से भाप छोड़ते हुए
चाय पीता होता हूँ तब

तुम एक नादान से एहसास की तरह
किसी भी पल उतर आती हो
मेरे और मेरे दरम्यान
मुझे बांटते हुएजिसमें
जिसमे ज्यादा बड़ा हिस्से वाला मैं
तुम्हारा होता है।

जब छू लेती हो
कभी मेरी बूंदों को
तब पता नही कितनी देर तक
भदभदा ता हुआ बरसता रहता हूँ मैं मुसलसल

एक बार याद है मुझे...
साहिल पे बैठे
सूरज की लाल रोशनी में
जब तुम्हें देख लिया था कनखियों से
मेरा सागर मदहोश कर
डूब गया था पानी में
साहिल पे बैठे बैठे .

जब कोहरा होता है हर तरफ,
जैसे किसी और दुनिया की ख्वाहिशें
भटक कर मेरी दुनिया पे छा जाते हैं,
तुम अपनी धूप खोल देती हो
और उन ख्वाहिशों को राह मिल जाती है
..........................
.....................

तुम्हें तो पता भी नही होगा
मैं हर रोज
उस राह पे
आँख रख कर खड़ा होता हूँ
जिससे तुम्हारे गुजरने की
होती है गुंजाइश
तुम्हारे एक और किश्त धूप के लिए।

बस एक और किश्त धुप के लिए !

Thursday, January 29, 2009

आदमी के पानी में कोई संक्रमण हो गया है!

(After watching a long column of second marriage in matromonial of a newspaper)

दिल और दिमाग
दोनों भिड़ा कर बंद कर दिए
और सांकल चढा ली अन्दर से

अब न सुनने को बचा था कुछ
और ना हीं आजमाने को
हर तरफ़ से दीवार ढह कर
बह गई थी पानी में

देर तक बैठी रही,
यादों और यादयास्त दोनों ही को
अलग करती रही
खींच-खींच कर.
एहसास उतार-उतार कर
रखती रही
कमरे के कोने में पड़ी पुरानी स्टूल पे

और अंत में जो
नही उतरा खुरचने से भी तो
धो दिए उफनती आंखों की धार से,
सब मिटा दिया , कुछ भी बाकी नही रखा

फ़िर
तन्हाई की मोटी तहें
लपेट ली जिंदगी पर
और लेट गई

अब लेटी है उखड़ी हुई ...

उखडे हुए लोगों की तादाद बढती जा रही है
आदमी के पानी में कोई संक्रमण हो गया है !

Wednesday, January 28, 2009

मंदी

(मैं सोंचता हूँ कि जैसी मंदी का दौर है और नौकरियां जा रही हैं वैसे हीं अगर हमारी रूहों के हाथों से बदन छूट जाएँ और फ़िर मिलने में मुश्किल हो )

तुम अलावा हो !

अभी तुम्हारी जरूरत नही,
तुम्हारे लिए अभी कोई आरजू नही है खाली.
अभी सारे देह हैं भरे हुए
और अभी आने वाली नई देहों के लिए
तुम उपयुक्त भी नही और
वहां के लिए पहले से कतारें भी लगी हैं

तुम्हें अभी और देर
उधडा हीं रहना पडेगा
वसन से maharoom,
संघर्षरत.

अभी मंदी का दौर है
अभी देह छोड़ने की क्या पड़ी थी आख़िर

खैर उस वक्त तक अगर बचे रह सके,
जब देहों कि किल्लत नही रह जायेगी
तो तुम्हे भी टांक दिया जायेगा किसी बदन से,
मिल जायेगी तुम्हें भी साँस

पर तब तक तो
किसी तरह समय निकालो !

Tuesday, January 27, 2009

अस्तित्व


वे लम्बी नींद में थे
और एक लंबे से ख्वाब को
हकीकत समझते हुए
ख्वाब के भीतर हीं
जिंदगी की जरूरतें जुटा रहे थे

नींद कितनी ही लम्बी क्यूँ ना हो
टूटती हीं है
और
सारे ख्वाब तभी तक संच लगते हैं
जब तक कि नींद नही टूटती.

Monday, January 26, 2009

चीयर्स!

Let’s overlap each other
Let’s encroach also!

Let’s sprout together
Let’s blossom also!

Let’s dream together
Let’s wake up also!

Let’s put some glasses
Let’s bring wine also!

Let’s break the pain
Let’s repair also!

Let’s enjoy the day
Cheers also!

Come on!
enjoy republic, my nation.