Tuesday, April 7, 2009

कल रात वो घर आई थी !

वो घर आई थी
कल रात
इतने सालों बाद

हर कमरे में एक बार घूम कर
मुआयना करने के बाद
उसने कहा-
तुमने वक्त पे झाडू क्यूँ नही लगायी अब तक

वो लम्हे जो बहर जाते-
मैंने कहा

घर जमा लो
और इन मरते लम्हों का अब क्या करना-
उसने कहा

थोडी देर चुप रह कर मैंने कहा -
इन्हे मरता हुआ क्यूँ कह रही हो

तुम जब तक आगे नही बढोगे
मैं भी नही बढ़ पाउंगी
और हम नही बढे
तो हमारे वे लम्हे ...
-वो बीच में हीं रूक गई !

मैंने कहा- ठीक है

इस बार शायद वो कभी न आने के लिए चली गई है .

7 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

वो घर आई थी
कल रात
इतने सालों बाद

हर कमरे में एक बार घूम कर
मुआयना करने के बाद
उसने कहा-
तुमने वक्त पे झाडू क्यूँ नही लगायी अब तक

दुष्यंत का एक शेर याद आ गया....

मैं तुझे भूलने के कोशिश में
आज कितने करीब पता हूँ......!!

Yogesh Verma Swapn said...

kavita bahut achchi hai, kahani spasht nahin ho pa rahi hai.

संध्या आर्य said...

हर कमरे में एक बार घूम कर
मुआयना करने के बाद
उसने कहा-
तुमने वक्त पे झाडू क्यूँ नही लगायी अब तक

वो लम्हे जो बहर जाते-
मैंने कहा

इन पंक्तियो मे प्यार की पाराकाश्टा दिखती है काश एक बार फिर आपके जीवन मे आती कभी न जाने के लिये...........

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ..

डिम्पल मल्होत्रा said...

aap ne uski yaado ko jhadhu laga ke fainka nahi...boht sambhal ke rakha hai...magar aap na lamhe nahi sambhale...

कंचन सिंह चौहान said...

आज फिर मौन...!

मुकेश कुमार तिवारी said...

ओम जी,

ऐसा लगता है कि लम्हों में बहुत कुछ जब्त है. बहुत अच्छी रचना के लिये बधाईयाँ.

मुकेश कुमार तिवारी