ये अच्छा है
कि इस कविता में जिन्हें आना था
उनमे से कुछ तो अभी व्यस्त हैं
एक मरे बैल की खाल उतारने में
कुछ अपनी छाती से
भूख पिला रही हैं अपने बच्चों को
और कुछ इस इंतज़ार में हैं
कि उनके देह हों तो वे उन्हें बेंच सके
और इसलिए ये संभव है
कि कविता अब वीभत्स होने से बच जाए
जहाँ खाल उतारने की प्रक्रिया जारी है
वहां किसी उत्सव की आशा में
ढेर सारे बच्चे
घेरे में खड़े हैं
अपनी लपलपाती आँखों के साथ
और बार-बार लताड़ने पे भी
पीछे नहीं हटते
उधर ऊपर ताड़ के पेंड़ो पे बैठे
कौवो,गिद्धों और चीलों को भी
इस उत्सव का भान है
और उनके इन्तिज़ार नहीं थकते
वे शायद ईमानदार भी हैं
नहीं तो बस्ती में कई बच्चों का वजन इतना भर है
कि उन्हें लेकर उड़ा जा सकता है
क्षमा कीजिये गर
ये कविता वीभत्स होती जा रही हो
और कवि असंतुलित
जबकि पूरी कोशिश की जा रही है कि ऐसा न हो
जैसे इस तरह की कई चीजें
अभी आपसे छुपाई जा रही हैं कि
बाढ़ और अकाल के दिनों में
सिर्फ सड़ी अंतड़िया होती हैं उनके खाने के लिए
वैसे मुझे लगता है
कवि के असंतुलित हो जाने में
कोई बुराई नहीं है
गर दुनिया के एक अरब लोग भूख से दबे हों
और उठ नहीं पा रहे हों
और कुछ लोग लगे हों इसमें कि
उनके खाल उतारे जा सकें
कि इस कविता में जिन्हें आना था
उनमे से कुछ तो अभी व्यस्त हैं
एक मरे बैल की खाल उतारने में
कुछ अपनी छाती से
भूख पिला रही हैं अपने बच्चों को
और कुछ इस इंतज़ार में हैं
कि उनके देह हों तो वे उन्हें बेंच सके
और इसलिए ये संभव है
कि कविता अब वीभत्स होने से बच जाए
जहाँ खाल उतारने की प्रक्रिया जारी है
वहां किसी उत्सव की आशा में
ढेर सारे बच्चे
घेरे में खड़े हैं
अपनी लपलपाती आँखों के साथ
और बार-बार लताड़ने पे भी
पीछे नहीं हटते
उधर ऊपर ताड़ के पेंड़ो पे बैठे
कौवो,गिद्धों और चीलों को भी
इस उत्सव का भान है
और उनके इन्तिज़ार नहीं थकते
वे शायद ईमानदार भी हैं
नहीं तो बस्ती में कई बच्चों का वजन इतना भर है
कि उन्हें लेकर उड़ा जा सकता है
क्षमा कीजिये गर
ये कविता वीभत्स होती जा रही हो
और कवि असंतुलित
जबकि पूरी कोशिश की जा रही है कि ऐसा न हो
जैसे इस तरह की कई चीजें
अभी आपसे छुपाई जा रही हैं कि
बाढ़ और अकाल के दिनों में
सिर्फ सड़ी अंतड़िया होती हैं उनके खाने के लिए
वैसे मुझे लगता है
कवि के असंतुलित हो जाने में
कोई बुराई नहीं है
गर दुनिया के एक अरब लोग भूख से दबे हों
और उठ नहीं पा रहे हों
और कुछ लोग लगे हों इसमें कि
उनके खाल उतारे जा सकें
(संजुक्त राष्ट्र के हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के आठ राज्यों में २६ अफ़्रीकी देशों से ज्यादा गरीब लोग रहते हैं )
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