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Friday, December 24, 2010

कथा-परिकथा

मुझे अपने देखे और सुने हुए से
यह भान है कि
मृत्यु एक नियम है
सभी नियमों में सबसे ज्यादा सच और शाश्वत
और उस नियम को जीवित रखने के लिए जन्म होता है

ऐसा जानते हुए भी
मैंने इस चक्र में शामिल किया तुम्हें
तुम्हारे जन्म के लिए बना जिम्मेवार
पर अगर तुम्हें जन्मना हीं था
तो अच्छा है जन्मना मेरे माध्यम से
क्यूंकि तुम बेटियां हो
और मैं अन्य पिताओं के बारे में
दावे के साथ
नहीं कह सकता
कि वे भी मेरी तरह अहोभाव से स्वीकार करते तुम्हे

मैंने सुना है कि
नचिकेता खुद चल कर जब
म्रत्यु के द्वार पे पहुंचा
तो तीन दिन इन्तिज़ार करना पड़ा उसे
और मृत्यु इसी तरह अक्सर डर कर छिप जाती है
जब कोई सामने हो लेता है उसके
पर मेरी बेटियों
जीवन ऐसा नहीं है
वो जन्मते हीं सामने आ जाता है
आँख दिखाने लगता है

तुम आयी
एक सनातन दुःख तुम्हारी मुठ्ठी में रख कर
भेजा गया तुम्हें
तुम्हारी माँ ने कोसा अपने नसीब को
उसे थाली पीटे जाने की वजह का हिस्सा होना था

तुम्हारी दादी ने
आस-पड़ोस की स्त्रियों से साझा किया
दो पोतियों के एक साथ होने का दुःख

तुम्हारे दादा ने कहा-
'कोई चिंता की बात नहीं है'
वे शायद अपनी चिंता भुलाने में थे

तुम्हारे नाना ने कहा-
'जब दो का पता था तो
कुछ सावधानी बरतनी चाहिए थी,
मैंने तो सोंचा था कि आप जांच करा चुके हैं '

और तुम्हारी नानी ने कहा-
'कोई बात नहीं, अभी बहुत जिंदगी बाकी है'

बहुत सारे लोगों ने कहा क़ि
'दोनों एक-एक हो जाते तो काम ख़त्म हो जाता'
और बहुत सारे लोग चुप रहे
मिठाइयों और पार्टियों पे ज्यादा बात नहीं हुई

मैं बैठा सोंच रहा हूँ
संवेदनाओं की इस कठोर म्रत्यु के बारे में
जिसका
इस तीक्ष्णता से भान
मुझे अभी-अभी हो रहा है

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