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Saturday, January 23, 2010

जगहें, जहाँ प्यार अब उपस्थित नहीं

हालांकि
यूथ हॉस्टल के जरा आगे
जहाँ शहीद स्मारक है
उनकी सीढ़ियों पे अभी भी बैठते हैं कुछ युगल
अभी भी होती है उन पे बारिश
और कभी-कभी तो ख़ास सिर्फ उन सीढ़ियों के लिए हीं
मैं नहीं गुजरता उस तरफ से,
मुझ पे नहीं होती अब बारिश


उसी तरह
डियर पार्क के पास
अभी भी बिकती है कॉफ़ी
बल्कि अब बढ़ गयी हैं कॉफ़ी की दुकाने वहां पे
और उससे सटे बगीचे में पड़े पत्थर के बेंचों पे
स्थायी रूप से बैठा करते हैं
सहसंबंध
पर मैं संबंध के सह नहीं अब


इसके अलावा वे अवस्थित हैं

जलमहल के किनारे
नाहरगढ़ की ऊँचाइयों पे
सेन्ट्रल पार्क के भव्य खालीपन में

जवाहर कला केंद्र की कलाओं में
यहाँ कुछ और नाम आसानी से जोड़े जा सकते हैं

कुछ और भी जगहें हैं
जो प्यार में उगाई गयी हैं
या उगाई जा रही हैं
जिनके बारे में कईयों कों मालुम नहीं
पर जहाँ जन्म लेती हैं
अनंत प्रेम कलाएं नियमित तौर पे


पर मुझे क्यूँ लगता है
कि स्टेच्यु सर्कल से लेकर सेन्ट्रल पार्क तक
या फिर यूनिवर्सिटी से लेकर जवाहर कला केंद्र तक
या आमेर से लेकर जंतर मंतर तक
कहीं बचा नहीं है प्यार
बिलकुल हीं नहीं

मैं अक्सर सोंचता हूँ...
प्यार तो शाश्वत है
वो तुम्हारे जुदा होने से ख़त्म कैसे हो सकता है !