घर लौटता हूँ
तो तुम्हारी यादें,
उसकी बाहों में खो जाती हैं
वैसे तो मुझे याद है
कि नहीं रहती इस शहर में अब तुम
पर फिर भी
धडकनों को न जाने क्या शौक है
रुक जाने का अचानक से
और दिल भी बहाने बना लेता है कि
तुम जैसा कोई दिख गया था
उधर वो अक्सर पूछ लेती है
रात को क्यूँ चौंक गए थे तुम
यूँ क्यूँ लगता है
कि कभी-कभी तुम्हारी धडकनें रुक जाती हैं
दफ्तर से लौटते हुए
नजरें मुड जाती है तुम्हारे घर की तरफ
पर कई बार भूल भी जाता हूँ
जब घर के लिए देर हो रही होती है
कभी-कभी घर लौटने पे
घंटी बजाने से पहले हीं
जब खोल देती है दरवाजा वो
तब सोंचता हूँ
यह केवल इन्तिज़ार नहीं है
तुम्हारी आँखों में भी
वो जो पिघल जाता था मिलने पर मुझसे
मैंने ऐसा कभी नहीं सोंचा
कि वो केवल इंतज़ार था
तुम्हारे जाने के बाद
सब वही तो चला रही है
कितना कुछ तो बढ़ भी गया है
दरअसल
कई बार तुम्हें याद करता
उसकी बाहों में गया हूँ
और कई बार
उसकी बाहें तुम्हारी यादों में रही हैं
तभी तो लगता है
कि सिर्फ आत्मा हीं नहीं
हमारे रिश्ते भी देह बदलते हें
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