जहाँ मैं लिखता हूँ
घंटों तर करता रहता हूँ
जमीं पानी से
कि शब्द अंकुरित हों अच्छे से
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहां रखता हूँ छाँव भी और धूप भी
कि पक्तियां झुलसे न
और उसमे आये ताकत भी
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहां से दूर जा कर पीता हूँ सिगरेट
कि धुआं न पी ले रुबाई
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहां रखता हूँ एक रुमाल
कि कागज़ गीले न हों
गर टपक जाए आँख धुंधली होकर
जहाँ मैं लिखता हूँ
लगा रखे हैं मैंने वहां पे बाड़
कि कोई अड़ियल शब्द पहुँच कर
गुस्ताखी न कर दे
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहाँ रहता हूँ कितना सचेत
कि कोई नज्म
रुखाई से पेश न आ जाए
मैं करता हूँ सारी कोशिशें
कि तुम तक पहुंचे सिर्फ और सिर्फ
एक मुलायम कविता
मैं लिखता हूँ इतने जतन से
और तुम पढ़ती भी नही
घंटों तर करता रहता हूँ
जमीं पानी से
कि शब्द अंकुरित हों अच्छे से
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहां रखता हूँ छाँव भी और धूप भी
कि पक्तियां झुलसे न
और उसमे आये ताकत भी
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहां से दूर जा कर पीता हूँ सिगरेट
कि धुआं न पी ले रुबाई
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहां रखता हूँ एक रुमाल
कि कागज़ गीले न हों
गर टपक जाए आँख धुंधली होकर
जहाँ मैं लिखता हूँ
लगा रखे हैं मैंने वहां पे बाड़
कि कोई अड़ियल शब्द पहुँच कर
गुस्ताखी न कर दे
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहाँ रहता हूँ कितना सचेत
कि कोई नज्म
रुखाई से पेश न आ जाए
मैं करता हूँ सारी कोशिशें
कि तुम तक पहुंचे सिर्फ और सिर्फ
एक मुलायम कविता
मैं लिखता हूँ इतने जतन से
और तुम पढ़ती भी नही
32 comments:
मैं लिखता हूं इतने जतन से ...वाह ! बहुत ही सुन्दर रचना, प्रस्तुति के लिये आभार्
jiske liye etne yatan wo padta bhi nahi....dil ke dard ki hud nahi hai...ek behtreen nazam,jeeti jagtee sans leti nazam....
oh.......om ji,
zabardast likha hai..........bhavon ki gahrayi lajawaab hai.
aaj mujhe meri galti ka ehsaas hua omji,
ab main bhi koshish karoongaa ki rubaai dhunaa
na pee le
waah waah
bahut hi komal
saumya aur saahityik star par anupam rachnaa..
badhaai !
..वहां से दूर जा कर पीता हूँ सिगरेट
कि धुआं न पी ले रुबाई...
..कि कागज़ गीले न हों
गर टपक जाए आँख धुंधली होकर...
बेमिसाल रचना है ये आपकी ओम भाई...वाह...वा...बधाई...
नीरज
मैं लिखता हूँ इतने जतन से और तुम पढ़ती भी नहीं ...कौन है वो संगदिल ..!!
बहुत बढ़िया ..!!
बहुत ख़ूब!!
---
ना लाओ ज़माने को तेरे-मेरे बीच
kya ehsaas likha hai apne.............
tum padhtin bhi nahin............
bahut hi khoobsoorat ..........
badhaai...........
Om ji,
Bahut Khubsurat Tarike se aap likhate hai...ab padhane wala na padhe to samjhiye ki wo kuch bemishal cheez chhod raha hai..
behad khubsurat nazam..badhayi ho..
काश ऐसे शब्द , मै भी 'अंकुरित ' कर पाऊँ !
"दिलकी सरज़मीं सूख गयी है ,
यहाँ भी दिखती चंद कोंपलें... ..."
ांउर मै करता हूँ सारी कोशिशें कि तुम तक पहुँचे एक मुलायम कविता
मैं लिखता हूं इतने जतन से और तुम पढती भी नहीं
बहुत ही खूब सूरत और लाजवाब रचना है बहुत बहुत बधाई
और तुम पढ़ती भी नहीं ..
बड़ी मुश्किल!
अच्छी रचना
मैं करता हूँ सारी कोशिशें
कि तुम तक पहुंचे सिर्फ और सिर्फ
एक मुलायम कविता
===
जी हाँ! बहुत मुलायम कविता होती है आपकी. यह तो बेहद नाज़ुक है. हद तो तब है जब :
मैं लिखता हूँ इतने जतन से
और तुम पढ़ती भी नही
ओम जी अति कोमल भावों को समेटे आपकी इस रचना को पढ कर लगा कि ऐसी कविताएँ सिर्फ़ किसी किसी को ही क्यों सूझती हैं.
आपके प्रेम और समर्पण को नमन.
मैं लिखता हूं इतने जतन से,,..वाह बहुत ही सुन्दर रचना,
में लिखता हूँ जतन से और तुम पढ़ती भी नहीं ....कविता लिखने का अनोखा अंदाज ....
मैं लिखता हूं औऱ तुम पढ़ती भी नहीं..चलो कोई बात नहीं आपने जिसके लिए लिखा वो तो नहीं पढ़ती पर हम तो पढ़ते हैं न।
वाह बहुत सुंदर रचना! नाम तो बहुत बढ़िया लगा और रचना की हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!
मेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
bahut sunder , bahut pyaari cute rachna. sunder abhivyakti. badhaai.
bahut sunder abhivyakti hai
badhai ...........
अति सुंदर भाव।
( Treasurer-S. T. )
मै करता .....एक मुलायम कविता.-इन पन्क्तियो मे जैसे दुनिया भर की कोमलता भरी हुई है.बहुत खूब.
बहुत ही सुन्दर लिखा है ........... खूबसूरत शब्दों को इतना लाजवाब बना दिया की सीधे मन में उतर गए .. आपके ख्यालों की उड़न अनंत है ........... खुले आकाश में नृत्य करते है आपके विचार और शब्द .......... लाजवाब......
बहुत ही सुन्दर रचना....भावनाओं का सागर उडेल दिया आपने. आभार.
ओम जी,
आपकी कविता "जब मैं लिखता हूँ" बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति है.बड़े सुन्दर शब्दों में अपने मन को खोल कर रख दिया है.शब्दों का अंकुरण और उसकी देख - रेख ....बिलकुल ही नया प्रयोग ...ईश्वर करे आपने जिसके लिए लिखा है उस तक आपकी बात पहुंचे !
...किरण सिन्धु .
बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है!
शब्द न केवल अंकुरित हुए हैं बल्कि खिल गए हैं!
और कविता का नत भी किया तो एक मासूम सी शिकायत से!-
मैं लिखता हूँ इतने जतन से
और तुम पढ़ती भी नही
बहुत खूब!
बहुत मासूम भोली शिकायत लिए हुए हैं आपकी यह रचना .बहुत अच्छी लगी
मैं करता हूँ सारी कोशिशें
कि तुम तक पहुंचे सिर्फ और सिर्फ
एक मुलायम कविता
मैं लिखता हूँ इतने जतन से
और तुम पढ़ती भी नही
ओम जी
बेहद पसन्द आयी,आपकी यह कविता
bahut sundar prastuti aur abhivyakti bhi.bahut pasand aayi aapki rachna.
Navnit Nirav
बड़ी एह्तियात से लिखते हैं भाई आप!
जहाँ मैं लिखता हूँ
वहां रखता हूँ एक रुमाल
कि कागज़ गीले न हों
गर टपक जाए आँख धुंधली होकर
...awesome thoughts....
मैं करता हूँ सारी कोशिशें
कि तुम तक पहुंचे सिर्फ और सिर्फ
एक मुलायम कविता
मैं लिखता हूँ इतने जतन से
और तुम पढ़ती भी नही
seriously loved your poems! following you from now on....
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