मैं लिख रहा हूँ उस दुःख को
तुम उस दुःख के भीतर पड़ी हो बेहोश
कभी-कभार,
एक आध मिनट के लिए
तुम आती हो बाहरऔर इससे पहले कि मैं शरीक होऊं
तुम्हारे दुःख में,
दुःख तुम्हें फ़िर लील लेता है
तुम्हें तो अंदाजा भी नही होगा
तुम्हारे दुःख का,
तुम तो बेहोश हो
और हमें सिर्फ़ अंदाजा है
यहाँ मैं लिख रहा हूँ दुःख
और तुम भोग रही हो अपनी छाती पर
आख़िर इसी छाती से पिलाया था न
तुमने दूध उसको
(मेरी बुआ के इकलौते पुत्र 'राहुल' की असमय मृत्यु पर, लगभग १६ वर्ष की अवस्था में )
33 comments:
ओम ! आप बहुत संवेदनशील कवि हो..अपने अपनी भुआ जी के दुःख पर ये जो कविता लिखी है यह अद्भुत है....हम कवि तो सिर्फ दर्द महसूस करते हैं.... शब्दों से खेलते हैं...पर जो लोग असल में दर्द को झेलते हैं उसकी कोई थाह नहीं....मैं इस समय आपके और आपकी भुआ जी के दर्द में शरीक हूँ....एक कवि होने के नाते मुझे अपने पास समझना....
भले ही हम किसी जाने वाले को लौटा
नहीं सकते.....आपका अपना....अमरजीत
om ji...
ek baar phir aapne dil ko chhuu lene wali baat kahi hai.
amazing...
बेहतरिन ओम जी, लाजवाब रचना। बधाई
अत्यन्त करुण काव्य
अन्तर्वेदना की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति .......
___हा !
बड़ा दुःख होता है
असहनीय होती है ये पीड़ा
___बुआजी को हौसला दो प्रभु !
दिवंगत को अपनी शरण में लो प्रभु !
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति
ओम जी,बहुत मार्मिक रचना है। बहुत सुन्दर!!
Om ji,
yah durbhagya ki ghadi hai. hamari prarthana aap sab ke saath hai.
aur yah kavita is marmik ghadi ke liye sachi shrdhanjali hain.
ishwar aapki buwa aur aapke samasth pariwaar ko sahkti pradaan kare.
और इससे पहले कि मैं शरीक होऊं
तुम्हारे दुःख में,
दुःख तुम्हें फ़िर लील लेता है
यहाँ मैं लिख रहा हूँ दुःख
और तुम भोग रही हो अपनी छाती पर
आख़िर इसी छाती से पिलाया था न
तुमने दूध उसको
मार्मिक रचना,बुआ जी को ईश्वर इस असीम दुख:को
बर्दास्त करने की ताकत दे.
निश्चय ही उत्कट संवेदनायें होती हैं आपकी कविताओं में । सुन्दर रचना । आभार ।
संवेदनशील सक्षम अनुभूति.
ओह ..पढ़के दिल धक -सा हुआ ..उस माँ का क्या हाल हुआ होगा ..सोच भी नही सकती ..
aankhe bheeg gyee apke dard se or kuch nahi kah saktee....
kuch nahi keh paaonga om bhai,
kyunki kavta ki to samiksha ki ja sakti hai ehsaason ki nahi.
bhagwan rahul ki aatma ko shanti de.
RIP.
हमेशा की तरह लाजवाब रचना! दिल को छु गई आपकी ये मार्मिक रचना!
अब कोई अंत नही दुःख का
बहुत सुन्दर भावः अच्छी रचना हमेशा की तरह
Waakai ashneey dukh.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
kitna satik likha hai........kisi kisi dukh ka koi anth nhi hota..........is kathin samay mein prabhu aapko aur aapki buaa ji ko is antheen dukh ko sahne ki shakti de aur divangat ki aatma ho shanti de.
बहुत सहजता से आपने संवेदनाओं को कविता के माध्यम से व्यक्त किया है |
महसूस होते हैं शब्द, बिलकुल वैसे ही जैसा आपने लिखा है |
शुक्रिया |
एक-एक शब्द भोगा हुआ यथार्थ सा लगता है...
मृत्यु जीवन का परम सत्य है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
लाजवाब रचना। बधाई
karunaspad kavya.
वाह जी !बहुत खूब...superb
मार्मिक रचना...
नीरज
बहुत ही मार्मिक एवं भावपूर्ण रचना ।
मार्मिक रचना कहना कितना आसान लगता है मगर उस दुख को भोगना और उस का साक्षी होना कितना मुश्किल होता है! एक मा के लिये तो बहुत बडी यातना है भगवान उन्हें सहन करने की ताकद दे आभार्
ईश्वर आपकी बुआ जी को इतना बडा दुख सहने की शक्ति दे और दिवंगत की आत्मा को शांति.
ऊँ शांति, शांति, शांति.
bahut dukh hua omji...........
dil ko chhhoo lene wali is kavita mein aapne bahut hi maarmik chitran kiya hai.........
आपके दुख को जानकर दुख हुआ..तो उस मां पर क्या बीती होगी।
बहुत ही करुण.
खुदाया ताकत बख्श मेरे ज़िस्मो-जां में की मैं ओम जी को पढ़ सकू ! .........................
नमन ................
आेम भाई बहुत सुंदर.
Sahi kaha amarjeet ji ne....
...aapki kavita padhne phir chala aaya...
...aur itni badhiya kavita ke liye tippani diye bina nahi reh saka...
BAHOOT HI MAARMIK ..... SACH MEIN DUKH KO LIKHNA SHAAYAD ASAAN HAI PAR USKO JHELNA BAHOOT HI MUSHKIL ....
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