Saturday, March 26, 2011
कुछ किया जाए कि कविता को सहारा हो
समझा जाए किसी कविता को ठीक कविता हीं की तरह, कोई भी कविता इससे ज्यादा और क्या चाहेगी और कवि को भी इससे ज्यादा और कुछ नहीं चाहना चाहिए। मौन में उसके उतर कर, कान लगा कर सुनी जाए उसकी आवाज। वो कहे रोने को तो जरूर रोया जाए, उसका तड़पना महसूस किया जाए और जरूरत हो तो तड़पा जाये साथ उसके। कुछ किया जाए कि कविता को सहारा हो। कविता में अगर आग है, तो आप कहीं से भी हो, आग जरूर लायें और तपायें अपनी आग को कविता की आग में। कविता को झूठ न समझा जाए, न हीं उसे जोड़ कर देखा जाए कवि के शब्दों से। कविता के अपने शब्द होते हैं, नितांत अपने और अगर आप उन्हें जला भी दें तो आवाजें आयेंगीं। दरअसल कविता का लिख दिया जाना कवि द्वारा हार स्वीकार कर लिया जाना है कि अब कविता के बारे में उससे कुछ नहीं किया जा सकेगा और तब जिम्मेवारी आपकी बनती है
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11 comments:
सच कहा, कविता तो बस अपना ही अर्थ संप्रेषित करना चाहती है, और कुछ भी नहीं।
कुछ कविताएं
होती हैं ऐसी-
जिन्हें पढ़ कर
नहीं सोचा जाता
भाव-पक्ष
या फिर
कला-पक्ष के बारे में।
रचा जाता है
बहुत कुछ,
सार्थक ध्वनि समूह
के बिना भी मर्मस्पर्शी।
.....यही लगा। शुभकामनाएं।
Hamesha yahee hota hai...aapkee rachana padhke mai nishabd ho jatee hun!
बहुत सही।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सच में, लिख दिए जाने के बाद कविता कवि की नहीं रह जाती है, उसका जन्म हो जाता है और एक व्यक्तित्व बन जाता है.
फिर पाठक उसे अपनी-अपनी दृष्टि से देखने के लिए स्वतन्त्र होते हैं. इसलिए उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि कविता के व्यक्तित्व को समझने की कोशिश करें.
कुछ पैरे से सहमत, कुछ से असहमति और कुछ से अपना डिस्कशन मांगता है.
kripya meri kavita bhi padhe.. www.pradip13m.blogspot.com
यूं भी कवि जो कविता में कहता है और पाठक जो कविता में पढ़ता है वह कभी भी एक नहीं होता है क्योंकि कविता कवि से मुक्ति पाकर पाठक की हो चुकी होती है |
बहुत दिनों बाद वापस आया हूँ .........कविता बल्कि आपकी कविताओं को स्मरण और अपनी कटी-फटी हस में ले लाने की कोशिश करता हुआ ...........और यहाँ आकर पता हुआ कवि अपनी कवितामयी नज़र से मुझे आशीर्वाद देने पहले से ही मोजूद हैं ......!!!!!!!! क्षमा कीजिएगा कविवर इस तुक्ष्य शिष्य ने आपको आफी प्रतीक्षा करवाई............हेना ॐ भैया अब आप नहीं कह सकते की मैंने कब प्रतीक्षा की ......और जिन्हें मैं बहुत नन्हा छोड़ गया था वे कविताये अब जीवन-दर्शन के अनन्य-अशंख्य बिम्ब प्रस्तुत करती हैं..............नहीं नहीं ........निसंदेह मैं ही पहले इन बिम्बों से साकछातकार नहीं कर पाय हूँ ........बहुत शुक्रिया ॐ भैया ..........आप मेरी क्लास कब ले रहे हैं ..........
संभव हो तो मै हमेशा कवि की किसी एक रचना को पढने की बजाय रचनाओ को पढने को आतुर रहता हूँ और कुछ हद तक मानता हूँ कि "कविता के अपने शब्द होते हैं, नितांत अपने". अब तक बहुंत से रचनाकारों की रचनाओं के संग्रह पढने का सौभाग्य मिला, मैं आपको लम्बे समय से पढता आ रहा हूँ , अधिकांश रचनाओं में नितांत स्थिर गूढ़ भाव की परछाई देखकर लगता है मानो आप अपनी रचनाओं के शब्द बनते चले जा रहे हों.
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