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Tuesday, November 2, 2010

जहाँ प्यार और पोलीथिन एक साथ संड़ते हैं

अभी कुछ देर पहले हीं
मैं जलती आँखों के साथ
नींद की एक लोकल ट्रेन में चढ़ा हूँ
और थोड़ी देर बाद हीं

मेरी नींद को
एक सपने पे उतर जाना है

जहां मेरी नींद अक्सर उतरती है
उस सपने से सटी एक जगह है
जहाँ मुझे अपना आशियाना बनाना था
जिसे मैं कभी प्यार के
और कभी होम लोन के अभाव में
अभी तक नहीं बना पाया
और मालुम नहीं कब तक ऐसा रहेगा

दरअसल
ये शहर कभी एक दलदल है
जहाँ भारी मात्रा में
प्यार और पोलीथिन एक साथ संड़ते हैं
और जहाँ घर की नींव नहीं बन पाती
और कभी एक बाजार है
जहाँ आदमी की धारिता आंकने की प्रक्रिया
लगातार चलती रहती है
ताकि उसे कर्ज दिए जा सकें

इस शहर का दिया हुआ एक डर है
जो मुझमें खुलेआम घूमता है
वो लौट कर जाने के लिए एक घर के ना होने का डर है
और कभी लौट कर न जा पाने का डर है
खुलेआम घुमते हुए यह डर मुझे कभी भी पकड़ लेता है
और लगभग हर रात
मेरी नींद डर कर उस सपने पे उतर जाती है
जिससे सटी वो जगह है


पर इससे भी बड़ा एक और डर है
कि किसी रात जब मैं
नींद की लोकल ट्रेन से जब सपने पे उतरने को होऊं तो
वहां कोई छिन्न-भिन्न पड़ा हो
और उसके बाद मुझे मालुम नहीं
कि मेरी नींद कहाँ जाया करेगी

__________

Thursday, March 25, 2010

अपने दुखों को सार्वजनिक करने से बचते हुए...

1]

वे कहीं भी और कितना भी रो सकते हैं
चाहे सड़क पे जोर-जोर से
या फिर कविता में चुप-चुप

कवि होने से
उन्हें मिली हुई है इतनी छूट
और ऐसा मान लिया गया है कि रोना
उनके काम का हिस्सा है
और इसलिए उस पर ज्यादा कान देने की जरूरत नहीं है

हाँ...कभी-कभी ताली बजाई जा सकती है
अगर वह बहुत सुन्दर या संगीतबद्ध रोये तो

उन्हें गाडियों के शोर के बीच
अपनी हेलमेट के भीतर चेहरा छुपाते हुए
या चलती ट्रेन के शौचालय में
नहीं रोना होता,
जैसा कि वे लोग करते हैं जो कवि नहीं हैं

2]

आम आदमी पे आजकल
खुश दिखाई देने का एक अतिरिक्त दबाब है.
जब भी हम मिलते हैं
उसके चेहरे पे दीखता है एक भाव
वैसा, जैसे कि उसने अभी रोना शुरू हीं किया हो
और बीच में हीं मुस्कुराना पड़ गया हो

तमाम तरह के दुखों के बीच से गुजरते हुए,
वे थकते रहते हैं खुश दीखते रहने की कोशिश में
और करते चलते है
कई तरह के दुखों कों स्थगित
किसी उपयुक्त समय और मौके के लिए

साथ हीं साथ
वे डरते भी रहते हैं
नकारात्मक दृष्टिकोण रखने के
नकारात्मक परिणामों से
और इसलिए
आधे से ज्यादा खाली ग्लास कों
जबरदस्ती आधे से ज्यादा भरा देखते हैं

वे लगातार जीते रहते हैं खुश रहने के दबाब को
और एक दिन मर जाते हैं
तब उनके चेहरे पे
खुश दिखाई पड़ते रहने की वेदना उभरी हुई होती है

3]

अपने दुखों को
सार्वजनिक करने से बचना सिखाया जाता है उन्हें,
उन्हें नहीं बताया जाता
कि कब और कैसे रोयें वे,
नहीं सिखाया जाता उन्हें रोने का सही इस्तेमाल

धीरे-धीरे जब बढ़ जाता है
दुःख का दबदबा
और वह परिवर्तित होने लगता है
हृदयाघात या रक्तचाप में
वे सुबह सुबह किसी पार्क में
एक झुण्ड बनाते हैं
और जोर-जोर से हँसते हुए रोते हैं

4]

जब भी मौका हाथ लगे
तुम जरूर रो लेना
उस रोते हुए कवि या उसकी रोती कविता की आड़ में
क्यूंकि
एक अकेला कवि कितनी देर और
रोता रह पायेगा तुम्हारे लिए
जबकि उसे अपने लिए भी रोना है ....