जब से प्रेम और कविताओं के बारे में
यह कहा जाने लगा है कि
वे अब महज वस्तुएं हैं
मैं बाजार में पड़े उत्पादों से
आँख मिलाने से कतराता हूँ
मेरे लिए प्रेम, कवितायें हैं
उनका अभाव कचोटती हुई कवितायें हैं
और प्रेम के पश्चात
अस्तित्व में आया प्रेम का अभाव
और भी ज्यादा कचोटती हुई कविता
और कभी जब तुम्हें भेजने के लिए
मैंने 'पैक' की थीं कवितायें
तब भी वे वस्तुएं नहीं थीं
वे कभी भी वस्तु नहीं हुईं मेरे लिए
तुम्हारी आँखें,
जहाँ मैं मजबूत दीखता था
वहां भी झांकते हुए डर लगता है
जिसकी वजह वो अंदेशा है
कि प्रेम तुम्हारी आँखों में डूब गया हो सकता है
और वहां उन आँखों के समंदर में
कविताओं की तैरती हुई लाश देखना
बेहद डरावना होगा
पर अंजाम से बेपरवाह होकर
मुझे देखना है एक बार तुम्हारी आँखों में
जहाँ मेरी तैरती हुई लाश हो सकती है
या फिर वो विश्वास
जिसे आँख भर, भर कर
मैं भष्म कर सकूं वो आवाजें
जिनमें कहा जाता है कि
प्रेम और कवितायें महज वस्तुएं हैं अब
और तब देखना चाहूँगा
बाजार में पड़े वस्तुओं की लिजलिजी स्थिति !!
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