मुद्दत से आरजू है कि तेरी चाँदनी में रहूँ।
तुम छेड़ो कोई तार कि मैं जिसकी रागिनी में रहूँ
हर तरफ तेरी लिखावट हो और,
मैं तो बस सदा उसकी स्याही में रहूँ
खुदा के रहेम-ओ-करम तुम पर मुसलसल बरसते रहें,
और मैं हमेशा उसकी वन्दगी में रहूँ।
कभी फूल तू, कभी पत्ता और कभी छतनार बरगद हो,
हर हाल में मैं तेरी नमी में रहूँ।
हो तेरी खूबसूरती के चर्चे तमाम शहर में,
मैं तेरे हुस्न की सादगी में रहूँ
तेरे दिए की लौ कभी बुझने ना पाए,
और मैं हमेशा उसकी रोशनी में रहूँ।
5 comments:
AAPKE BOL AUR BHAV BAHOT HI UMDAA HAI JANAAB... DHERO BADHAAYEE
ARSH
khubsoorat rachana.......aise hi likhate rahe ..........bahut khub
बहुत सुन्दर.
bahut sarahniya rachna, badhai.
boht khubsurat ahsaas .dil ko chhu gye...
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