दरारें बनाती हैं ख्वाब, नींद में
एक लम्स छू गया था कल ख्वाब में
सुहाने एक मौसम की तरह
और उसे ढूँढता फ़िर रहा हूँ मै नींद नींद आज
कल कोई और छू जायेगा
और कल किसी और तलाश में हो जाऊँगा
ख्वाब देखता रहा हूँ
और खोजता भी रहा हूँ
इस उम्मीद में
कि शायद रूबरू हो कभी
पर कोई कितना भागे
और किसके पीछे
वक्त के साथ
ख्वाब भी तो बदलते रहते हैं
एक के बाद एक दूसरा ख्वाब और
एक के बाद एक दूसरी तलाश
और नतीजतन
अब सैकड़ों दरारें हैं नींद में
4 comments:
ख्वाब भी तो बदलते रहते हैं
एक के बाद एक ख्वाब और एक के बाद एक तलाश
और नतीजतन
अब सैकड़ों दरारें हैं नींद में
सच कहा आपने , बधाई.
और इन दरारों को भरने के लिए ................ शायद नींद की गोलियां......................
चन्द्र मोहन गुप्त
sahi kaha, swapn dar swapn aur koi bhi purn nahin , dararen hi dararen. wah.
दरारे कई बार खामोशी पैदा करती है उसके बाद..... एक अच्छी नीन्द की तलाश ......ख्वाब तभी जन्म लेते हो शायद !
एक तर्क संगत रचना
बहुत खूब कहा!!
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