प्राणवायु में निरंतर उठापटक है
किसी दूसरे सफ़र पे
निकल जाना चाहती है आत्मा
मगर द्वंद में जकड़ी देह रोक लेती है
एक तरफ
जीवेशना और पेट की आड़ ले कर
पाप अपनी ईंटें जोड़ता है अनवरत
और दूसरी तरफ
एक भीड़ भरे चौराहे पे
चेतना अपने देह्गुहों में
मुक्ति के सपने समेटे खड़ी है
एक सवाल है जो अक्सर
चकरघन्नि सा घुमाता हुआ आता है
और हर बार पहले से तगडी चोट करता है
ख़ुशी की चौडाई
दुःख के गोलाई के न्यूनतम अंश से भी
कम पड़ती है अक्सर
दर्द इतना है
कि मन बार-बार अपनी साँसे बंद करता है
प्राणवायु में निरंतर उठापटक है
3 comments:
behatareen abhivyakti. badhai.
कुछ लोग ऐसे परिस्थिति मे होते है कि उन्हे आपनी जिन्दगी बोझ सी होती है,परिस्थितियाँ अपने वश मे नही होती है तो ऐसी स्थिति मे ही ......
किसी दूसरे सफ़र पे
निकल जाना चाहती है आत्मा
दर्द इतना है
कि मन बार-बार अपनी साँसे बंद करता है
मुझे ऐसा लगता है मन उन परिस्थिति मे साँस लेना छोड देती है जब दर्द हद से गुजर जाता है तब कही आदमी के अन्दर की भावनाये और ख्वाहिशे दोनो ही मर जाती है.
bahut badhiya abhivyakti..........ye uthapatak to lagi hi rahti hai jab tak santosh na aa jaye.
kabhi samay mile to hamare blog par bhi aa jaya kijiye.
Post a Comment