"तमाशा यूँ सरे आम कर गया , हमारी तो निगाहें झुका गया शानसे नज़र अंदाज़ कर गया , अपनी मंज़िले जानिब , निकल गया ...! कहा,अब आज़ाद हो,मै चला..! पैरों में और भँवर बाँध गया.."
सच कहा Om जी ............ एक tanke को seete seete doosra ughar जाता है ........... कुछ ही shabdon में likhi gahri बात ............ देर तक ruki rahtihai आपकी rachna maanas patal पर.......
हालात तो हमने ढक दिये पैबंदो से पर पैबंदो को हम नही ढक पाये.
bahut hi sahi gar paiwand dhakana aata to jindagi se koi sikawaa bhi nahi hoti .......tab insan aapani har galatiyo ko dhank sakata tha our sabhi kharab samayo par parda dal kar insan khush ho sakata tha ............kyoki maansa par ko rough lakir nahi hoti .....ek behatarin abhiwyakti
मीनू जी, बहुत शुक्रिया. मेरे प्रोफाइल के ऊपर जो कविता है वो मेरे भी दिल के बहुत करीब है.
रश्मि प्रभा जी, आपने मुझे हिंदी-युग्म के लिए मुझे आमंत्रित किया है, यह मेरे लिए एक पुरस्कार के समान है. बहुत-बहुत शुक्रिया. आपका जन्म सीतामढ़ी में हुआ है, जानकार अच्छा लगा.
अन्य मित्रगण, जो लगातार आ रहे हैं मेरे ब्लॉग पर और अपनी प्रतिक्रिया से मुझे प्रेरित करते रहे हैं. मैं उन सभी मित्रों का मैं तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ. बहुत धन्यवाद.
aaj to tarif ke liye shabd kam pad gaye hain..........na jaane kahan se itne gahre vichar late hain ..........kuch hi panktiyon mein kitni goodh baat kah di.........shayad aaj tak ki sabse behtreen rachna hai .
30 comments:
haalaat toh humne dhak diye paibandon se
par paibandon ko dhak nahin paaye.......
hay hay hay ....
kavita ke charmotkarsh ka charmbindoo hai ye !
BHAI
EK HI VAAKYA AAPKE LIYE....
BADHAAI !
आपकी प्रोफाइल के ऊपर लगी कविता मुझे बहुत अच्छी लगती है.
पैबन्दों को हम कब ढँक paate हैं ?
"तमाशा यूँ सरे आम कर गया ,
हमारी तो निगाहें झुका गया
शानसे नज़र अंदाज़ कर गया ,
अपनी मंज़िले जानिब , निकल गया ...!
कहा,अब आज़ाद हो,मै चला..!
पैरों में और भँवर बाँध गया.."
पैबन्द को ढकने के लिये एक और पैबन्द लगा लो
रिश्ते तो बेमानी हुए एक और अनुबन्ध लगा लो
बेहतरीन
भावात्मक अभिव्यक्ति... वाह..
भाव उम्दा है, जरा बांधिये पैकेज में!! :)
boht khoobsurati se likha hai...dosh halaat ka hi hota hia,insaan bewafa nahi hota..kuch halaat hi aise ho jate hai...
bahut achhi lagi rachana badhai.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आभार्
हालात तो हमने ढक दिये पैबंदो से
पर पैबंदो को हम नही ढक पाये.
bahut khoob....!
सच कहा Om जी ............ एक tanke को seete seete doosra ughar जाता है ........... कुछ ही shabdon में likhi gahri बात ............ देर तक ruki rahtihai आपकी rachna maanas patal पर.......
Aapki soch ki thaah paana namumkin hai. Gazab.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत गहरे भाव.......
कुछ नज्में जो छूट जाती हैं अधूरी .... अपनी ये रचना लिखित और अपनी आवाज़ min एकॉर्ड करके भेज दें,हिन्द्य्ग्म काव्य-मंच के लिए....संक्षिप्त परिचय भी
लिखते तो हम भी हैं मगर,
आप कमाल कर जाते है.
हालात तो हमने ढक दिये पैबंदो से
पर पैबंदो को हम नही ढक पाये.
kya likha hai Omji aapne.......
mujhe aisa lagta hai ki aap wahi likhte hain....... jo main sochta hoon....... meri soch ko aap lafzon ka roop de dete hain......
aapke lekhan ka main bahut bada FAN hoon........
aur! haan! apke sunder comments mera hausla badhate hain........ iske liye main apka shukrguzaar hoon........
सुन्दर रचना मुझे भी अपने गीत की पंक्तियां याद हो आयी-
फटे सोल सा वक्त हुआ है
अंधा,लंगडा,गूंगा-बहरा.
हालात तो हमने ढक दिये पैबंदो से
पर पैबंदो को हम नही ढक पाये.
bahut hi sahi gar paiwand dhakana aata to jindagi se koi sikawaa bhi nahi hoti .......tab insan aapani har galatiyo ko dhank sakata tha our sabhi kharab samayo par parda dal kar insan khush ho sakata tha ............kyoki maansa par ko rough lakir nahi hoti .....ek behatarin abhiwyakti
0m ji bahut khoob kaha aapne- par paibandon ko dhak vahin paye
छोटी सी प्यारी सी कविता मुझे बेहद पसंद आया! बहुत खूब!
मीनू जी, बहुत शुक्रिया.
मेरे प्रोफाइल के ऊपर जो कविता है वो मेरे भी दिल के बहुत करीब है.
रश्मि प्रभा जी, आपने मुझे हिंदी-युग्म के लिए मुझे आमंत्रित किया है, यह मेरे लिए एक पुरस्कार के समान है. बहुत-बहुत शुक्रिया. आपका जन्म सीतामढ़ी में हुआ है, जानकार अच्छा लगा.
अन्य मित्रगण, जो लगातार आ रहे हैं मेरे ब्लॉग पर और अपनी प्रतिक्रिया से मुझे प्रेरित करते रहे हैं. मैं उन सभी मित्रों का मैं तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ. बहुत धन्यवाद.
aaj to tarif ke liye shabd kam pad gaye hain..........na jaane kahan se itne gahre vichar late hain ..........kuch hi panktiyon mein kitni goodh baat kah di.........shayad aaj tak ki sabse behtreen rachna hai .
आज तो मेरे पास शब्द ही नही है इस रचना के लिए, है तो बस यही लाजवाब।
आप की रचना से बरसों पहले पढ़ा एक शेर याद आ गया:
ज़िन्दगी क्या किसी मुफलिस की क़बा है
जिसमें हर घडी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं
मुफलिस: गरीब, क़बा: कम्बल...
नीरज
हालात तो हमने ढक दिये पैबंदो से
पर पैबंदो को हम नही ढक पाये.
kya khoob likha badhai!!!
हालात तो हमने ढक दिये पैबंदो से
पर पैबंदो को हम नही ढक पाये.
log bato bato mein bahut kuchh kah jate hain...aap kavy rachna mein bahut kuchh kah jaate hain..yahi to khasiyat hai aapki om bhai...
saurabh k.swatantra
agar albela ji ek hi vakya mein badhai de rahe hain to mai aapko ek hi lekh mein badhai deta hu.
लाजवाब.........
दिल को छू गई ये रचना आपकी!
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