धूप में पड़े रहे वो
खुले आसमान के नीचे
सूखते-टटाते
आखिर तक
पहले रंग उतरे उनके
और फिर उधडती गई
धीरे-धीरे
सीवन उनके बीच की,
छाँव खींच कर वे
आशियाना जमा लिये होते, गर
एक ने मान ली होती दूसरे की जिद
मगर वे अड़े रहे
न छाँव खींची, न जिद अपनी
पड़े रहे वे धूप में चिद्दिया उड़ने तक.
जाने क्यूँ, जाने कैसे!
36 comments:
छाँव खींच कर वे
आशियाना जमा लिये होते, गर
एक ने मान ली होती दूसरे की जिद...sahi kaha aapne ek ne maan li hoti agar dusre ki zid...kabhi barbad hum nahi hote,teri marzi agar nahi hoti.....
कितनी सहजता से इतनी असहज बात कह दी आपने.
आपकी रचनाये मुझे अति प्रिय है ओम जी ............जिद .........ने फिर अवाक कर दिया ........आप धीरे-धीरे मारते हैं ,पर सच मार ही डालते हैं .............मर गया मैं आपकी जिद पर ...........
छाँव खींच कर वे
आशियाना जमा लिये होते, गर
एक ने मान ली होती दूसरे की जिद
अति सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर!!!!!!
बहूत खूब ओम भाई
बहुत बढिया व सुन्दर रचना है।बधाई।
बहुत ही बेहतरीन रचना बधाई ।
om ji, bhaiya aaj to thok baja kar shabashi dene ko man kar raha hai. de dun . chalo di. shabash bahut khoob.
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने
छाँव खींच कर वे
आशियाना जमा लिये होते, गर
एक ने मान ली होती दूसरे की जिद
सुन्दर
Aapki rachnaaon men gazab ke bhaav hote hain.
( Treasurer-S. T. )
काश ऐसा होता हम सब समझ जाते इस बात को,
सुन्दर बात,सटीक शब्द चयन,और नायाब प्रस्तुति.
जीवन की उलझन का सांगोपांग वर्णन करती
इस प्यारी कविता में आपने
धूप-छाँव के माध्यम से
उम्दा बात कही.......
बढाई !
जीवन में पहल ज़रूरी है
छाँव खीचकर वे --- आशियाना जमा लिये होते ---
इतनी जिद क्यो?
बहुत सुन्दर
sahi hai,zidd mein kabhi kabhi sab kuch kho jata hai,sunder rachana.
bahut sunder
बहुत बढिया !!
आपकी ये छंद-मुक्त कवितायें विशिष्ट होती हैं!!!
jid........yahi shirshk diya hai aapne om ji.hamri anginat bahvnao ke beech ye bhi ek aisi bahvna hai jismein log mar mitne ke liye taiyar ho jate hain.jaise har nakaratmak soch ka natija nakaratmak hi hota hai..wahi iska bhi hota hai.
In sari baton ko aapne bade hi achchhe dhang se prastut kiya hai.Bahut pasand aayi aaki ye JID ek achchhi kavita likhne ki.
Navnit Nirav
बहुत सुन्दर.
छाँव खींच कर वे
आशियाना जमा लिये होते, गर
एक ने मान ली होती दूसरे की जिद.....
very nice.....
छाँव खींच कर वे
आशियाना जमा लिये होते, गर
एक ने मान ली होती दूसरे की जिद
ओम जी दूसरी पँक्ति में "जमा लिए होते" की जगह यदि "जमा लेते" कर दें तो व्याकरण की दृष्टि से अधिक उपयुक्त होगा.
कविता सुन्दर है.
बहुत अच्छे
kya jadoo hai om bhai aapki rachna me lajwab
आशियाना जमा लिये होते, गर
एक ने मान ली होती दूसरे की जिद...
बहुत सुंदर है
सुंदर.. भावपूर्ण रचना.. वाह..
bahut hi khoobsoorat ahsaas........bhavon ko baandh diya hai
शानदार प्रस्तुति।
बधाई!
छाँव खींच कर वे
आशियाना जमा लिये होते, गर
एक ने मान ली होती दूसरे की जिद..
bahut hi sahaj aur saral kavita.......
khoobsoorat.....
मुझे आपकी हर एक रचनाएँ बेहद पसंद है ! बहुत ही सुंदर भाव के साथ आपने इस रचना को प्रस्तुत किया है!
once again a very nice composition....
great work....
SACH KAHA AAPNE ....... KAI BAAR POORA JEEVAN BEET JAATA HAI BAS APNI APNI JOOTHI SHAAN NAHI TOOTTI ...... YE EGO UM PALON KO BARBAAD KER DETI HAI JO JEEVAN BAN KER JIYE JAA SAKTE HAIN ........ BAHOOT KHOOBSOORAT RACHNA ........
अक्सर रिश्ते भी ऐसे ही चिन्दी बन जाते हैं..वक्त के बदलते मौसम मे..जिद और ठहराव की वजह से..खूबसूरत..कई बातें एक साथ कह दी आपने.
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