शहर के जिस हिस्से में आज बारिश थी
वहां आसमान
कई दिनों से गुमसुम था
चुपचाप,
जिंदगी से बाहर देखता हुआ एकटक
पर आज बारिश थी
और शहर का
वो गुमसुम हिस्सा
एकाएक अब पानी पे तैरने लगा था
जैसे कि डूब कर मर गया हो
पर प्यार था कि जिए जाने की जिद में था
और इसी जिद में
सेन्ट्रल पार्क के एक बेंच पे
एक नामुमकिन सी ख्वाहिश बैठी हुई थी
कि कहीं से भी तुम चले आओ,
और भर लो अपने आगोश में इस बारिश को
उधर आसमान का दिल भी
शायद बहुत भर गया था
या फिर
कहीं आग थी कोई
जो बारिश को बुझने हीं नहीं दे रही थी
शाम के घिर आने के बहुत देर बाद तक
कुछ बच्चे खेल रहे थे कागज़ के नाव बना कर,
छप-छप कर रहे थे पानी पर
उन्हें नहीं था मालुम अभी कि मुहब्बत कैसी शै है
वे नाव, शहर के उस हिस्से से
अभी ज्यादा जिन्दा थे
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Tuesday, June 8, 2010
Tuesday, June 2, 2009
शरीर में टिके रहने की वजह
शरीर में टिके रहने की वजह
देती है साथ कोई तमन्ना
एक ख्वाहिश है जो
नही जाती छोड़कर कभी
कोई ख्वाब है जो
कभी रूठता नही
टूटता नही है एक
नशा है जो उम्मीद का
मन के आले में अरमानो का एक दीया है
जो अपनी लौ नही समेटता
एक जिंदगी है जो
कभी मरती नही
और कितनी चाहिये वजहें
इस शरीर में टिके रहने के लिये.
देती है साथ कोई तमन्ना
एक ख्वाहिश है जो
नही जाती छोड़कर कभी
कोई ख्वाब है जो
कभी रूठता नही
टूटता नही है एक
नशा है जो उम्मीद का
मन के आले में अरमानो का एक दीया है
जो अपनी लौ नही समेटता
एक जिंदगी है जो
कभी मरती नही
और कितनी चाहिये वजहें
इस शरीर में टिके रहने के लिये.
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