पतझर में जो पत्ते
बिछड़ जाते हैं अपने आशियाने से,
वे पत्ते जाने कहाँ चले जाते हैं
उन सूखे पत्तों की रूहें
उसी आशियाने की दीवारों पे
सीलन की तरह बहती रहती है
किसी भी मौसम में ये दीवारें सूखती नही
ये नम बनी रहती है
मौसम रिश्तों की रूहों को सूखा नही सकते
5 comments:
सही है।
घुघूती बासूती
bahut hi gahri bhavavyakti.
खुबसूरत अभिव्यति .....अच्छी रचना !
मौसम रिश्तों की रूहों को सूखा नही सकते
नहीं जनाब .....पर कुछ रिश्ते जरूर मौसमो की तरह बदल जाते है....
बहुत बढिया ..पर आजकल बदल जाते हैं रिश्ते .. लेकिन फिर भी सकारात्मक सोंच रखना अच्छा है।
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