Friday, May 15, 2009

गुनगुनी धूप वाले मौसम

कुछ गुनगुनी धूप वाले मौसम होते हैं
जो पसर जाते हैं जिंदगी की अलगनी पर
कुछ इस तरह जैसे कि वे सारा पतझर ढांप लेंगें।
तमाम उगे हुए दर्द और सुखी हुई तन्हाईयाँ गिरा कर
वो भर देते हैं नंगी शाखों को कोंपलों से।
कोयल कूकती है, पपिहे गाते है
और योवन दुबारा पनपने लगता है।

गुनगुनी धूप वाले मौसमों को भी जाना होता है
वे चले जाते हैं

पर जब कभी चाँद मद्धम हो, रातें
सर्द और जिंदगी को कहीं दुबकने का जी हो
तो वो गुनगुनी धूप वाले मौसम उतर आते हैं अलगनी से
और ढांप लेते हैं अपनी धूप से

ऐसा ही एक मौसम मेरी डायरी में रखा है
वो मौसम तुम्हारा है
और उसमे तुम्हारी गुनगुनी धूप है।

8 comments:

Yogesh Verma Swapn said...

bhai jo mera hai mujhe de do
mujhe bhi gunguni dhoop ka maza de do

wah, bahut khoob om ji,badhia likhte hain aap.

Udan Tashtari said...

ऐसा ही एक मौसम मेरी डायरी में रखा है
वो मौसम तुम्हारा है
और उसमे तुम्हारी गुनगुनी धूप है।

-क्या बात है, बहुत खूब!!

pallavi trivedi said...

कुछ गुनगुनी धूप वाले मौसम होते हैं
जो पसर जाते हैं जिंदगी की अलगनी पर

बहुत खूबसूरती से लिखा है ....पूरी नज़्म पसंद आई.

Vinay said...

ओम भाई बहुत ही बढ़िया

डॉ .अनुराग said...

ऐसा ही एक मौसम मेरी डायरी में रखा है
वो मौसम तुम्हारा है
और उसमे तुम्हारी गुनगुनी धूप है।

बहुत खूब......

vandana gupta said...

bAHut hi badhiya likha.........seedhe dil se .........sach kuch mausam aise hi hote hain.

मोना परसाई said...

कुछ गुनगुनी धूप वाले मौसम होते हैं
जो पसर जाते हैं जिंदगी की अलगनी पर
.....ऐसा ही एक मौसम मेरी डायरी में रखा है
वो मौसम तुम्हारा है
और उसमे तुम्हारी गुनगुनी धूप है।
गुनगुनी धूप सी ही सुन्दर मखमली कविता .

संध्या आर्य said...

ek behtarin rachana