Friday, May 8, 2009

नींद से बिछड़ा हूँ मै

एक नींद से बिछड़ा हूँ मै

एक ख्वाब का टुकड़ा हूँ मैं



चील सी उड़ती हवाएं

धूप जैसे चोट खाए

कुछ संग थे जो अरमान वो अरमान बिखरते गए

साथ में बिखरा हूँ मैं



एक नींद से बिछड़ा हूँ

मै एक ख्वाब का टुकड़ा हूँ मैं



हालात गिरते गये

रंगरेज उजड़ते गये

धूप में धुंधले हुए सब श्याम पे ठहरा हूँ मैं ,

रंग का उतरा हूँ मैं



एक नींद से बिछड़ा हूँ मैं

एक ख्वाब का टुकड़ा हूँ मैं



7 comments:

आशीष कुमार 'अंशु' said...

Bahoot khoob..

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ..

संध्या आर्य said...

चील सी उड़ती हवाएं

धूप जैसे चोट खाए

कुछ संग थे जो अरमान वो अरमान बिखरते गए

साथ में बिखरा हूँ मैं

aisee hi hoti jindagi shaayad
khubasurat nazm

Udan Tashtari said...

एक नींद से बिछड़ा हूँ\
मै एक ख्वाब का टुकड़ा हूँ मैं


--बहुत उम्दा..बेहतरीन!!

डिम्पल मल्होत्रा said...

एक नींद से बिछड़ा हूँ मै

एक ख्वाब का टुकड़ा हूँ मैं

its realy so nice....ek khab ka tukda hun main....very b ful...

Vinay said...

चील सी उड़ती हवाएं
धूप जैसे चोट खाए

कमाल की सोच से जन्मी लाइनें

kumar Dheeraj said...

बहुत खूब लिखा है आपने ।
जो लिखा है दिल तक असर कर रहा है शुक्रिया