तुझे देखा है कई बार ख्वाब में
सोचता हूँ कोई शेर लिखू तेरे किताब में
बडी देर तक आंखे रही बेचैन
जो छिपा लिया तुने चेहरा हिजाब में
जाने कब तक लहरे रक्श करती रही
जाने किसने मिला दी समंदर शराब में
तुमने तो खोल दी अनजाने ही में आंखो की धार को
तुम्हे क्या पता कौन बह गया उस शैलाब में
हम पीते है, हमे मालूम है
कितना तो नशा है उनकी नजर में और कितना शराब में
करे जो कोई सवाल आडे- तिरछे तुमसे तो
कह देना उनसे कि तुम रहते हो खुदा के रुआब में
सोचता हूँ कोई शेर लिखू तेरे किताब में
बडी देर तक आंखे रही बेचैन
जो छिपा लिया तुने चेहरा हिजाब में
जाने कब तक लहरे रक्श करती रही
जाने किसने मिला दी समंदर शराब में
तुमने तो खोल दी अनजाने ही में आंखो की धार को
तुम्हे क्या पता कौन बह गया उस शैलाब में
हम पीते है, हमे मालूम है
कितना तो नशा है उनकी नजर में और कितना शराब में
करे जो कोई सवाल आडे- तिरछे तुमसे तो
कह देना उनसे कि तुम रहते हो खुदा के रुआब में
6 comments:
तुमने तो खोल दी अनजाने ही में आंखो की धार को
तुम्हे क्या पता कौन बह गया उस शैलाब में
badhia hai om ji , nikhar aa raha hai.
bahut achha omji,
badhai!
जाने कब तक लहरे रक्श करती रही
जाने किसने मिला दी समंदर शराब में
-बेहतरीन!
तुमने तो खोल दी अनजाने ही में आंखो की धार को
तुम्हे क्या पता कौन बह गया उस शैलाब में
ऐसा लगता है कि आप ख्वाब मे नही बल्कि हकिकत मे देखा है उसे...........गुस्ताखी माफ............ पूरी तरह से डुबकर लिखते हो मियाँ..........लाजबाव...... यह कविता मानो जीवित कर देता है ख्वाब को.
तुमने तो खोल दी अनजाने ही में आंखो की धार को
तुम्हे क्या पता कौन बह गया उस शैलाब में !!!
Waah ! Waah ! Waah !
lajawaab !
हम पीते है, हमे मालूम है
कितना तो नशा है उनकी नजर में और कितना शराब में
सही कहा ओम जी..........पीने वाला ही जानता है आँखों का और शराब का नशा.............
लाजवाब लिखा है
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