Wednesday, November 22, 2017

मेरा जागना तुम्हारी नींद को चुभता रहे!



मैं जानती हूँ
तुम सो रहे होगे अभी
यह जानते हुए भी
कि मैं जाग रही होउंगी

पर मैं जागती रहा करूंगी 
सिर्फ इसलिए
कि तुम ये जानते हुए सोओ
कि मैं जाग रही होउंगी
और तुम अपनी नींद में भी
मेरे जागने की नोक पर रहो

और कल की एक और सुबह जब
तुम जागो...

तो मैं अपने बिस्तर से उठकर
कैलेंडर की एक और तारीख पर
गोला लगा दूं
कि जिसमें
तुम सोये रहे
यह जानते हुए कि
मैं जाग रही होउंगी
और फिर उन्हें,
उन गोले लगे तारीखों को
कभी नहीं गिनूँ!

मेरा जागना तुम्हारी नींद को चुभता रहे!


Sunday, November 19, 2017

मैं तुम्हारी बारिश में बहुत उपजता हूँ...

मैंने तुमसे पूछा था
कि सबसे ज्यादा क्या पसंद है तुम्हें
और तुमने कहा था-
बारिश में भींगना

मैं तभी समझ गयी थी
कि तुम प्रेम-बीज हो
भींग कर, फूट कर,
अंकुरित होकर
लहलहा कर एक दिन भर दोगे मेरे जगत को

और ठीक वैसा हीं हुआ
मेरा ये जगत लहलहा उठा है

मैं  तभी तुम्हारे साथ चल पड़ी थी
हम घूमें बादल-बादल
उड़े आकाश-आकाश 

और फिर एक लाल सुर्ख शाम को
मैंने बारिश को
जब लिया था अपने आगोश में
तब तुमने भी अपनी बाहें खोल दीं थीं

मैं उपजाऊ बनी
और तुम लहलहाए

प्रेम अब और उपजता है
प्रेम की बारिश अब और होती है
और पता नहीं इन लहलहाते खेतों को क्या हुआ है
ये भी बढ़ते हीं जा रहें हैं
न ओर, न छोर !

Saturday, November 18, 2017

अब फिर एक और लम्बा, भूरा और इकहरा समय


कितना समय,
कितना लम्बा, भूरा और इकहरा समय
गुजारने के बाद
मैने फिर से हासिल किया था वो लम्हा,
पहुंचा था उस लम्हे के करीब
जिसके ताप में
खाक होना
अब बस एक लम्हे की बात थी

और...
देखो फिर चूक गया

ये नही कहूंगा कि
तुमने रोक लिया अपनी लपटों में आने देने से मुझे 

जरूर उस लम्हे को पार करना इस जन्म की
नियति नही रही होगी 
या फिर
उस तरह खाक होना 
मुश्किल होता होगा 
इस तरह खाक होने से!