एक भीड़ का हिस्सा होकर
जिस दिन तुम्हारे हाथ
आततायी हाथों में तब्दील हो गए
उस दिन की रात घर तो नहीं लौटे होगे तुम
और अगर लौटे भी होगे तो
तो घर के किसी कोने को पकड़ कर सिमट गए होगे
बत्तियों को कर दिया होगा बंद
और बीबी-बच्चों को, माओं-बहनों को कर दिया होगा पास आने से मना
फिर तुम अँधेरे में बेआवाज रोये भी होगे
जब तुमने सोंचा होगा
उस आदमी और उसकी आँखों में उभरे खौफ और लाचारी के बारे में
और तुम्हें डर भी लगा होगा
जब तुमने उसकी जगह खुद को रख कर देखा होगा
अगली रोज अखबार पढने के बाद
या मैं गलत सोंच रहा हूँ
तुम और तुम्हारे जैसों के बारे में
तुम वो हो
वही जो जीतने के लिए,
सत्ता बनाने या बचाने के लिए
मारने या रेप करने के लिए
या फिर अपनी मामूली जरूरतों के लिए
बनाते हो एक भीड़
और उसकी आड़ में करते हो हत्याएं
तुमने ईजाद की है हत्या की ये तकनीक
जहाँ क़ानून के साथ कुश्ती खेली और जीती जा सकती है
अगर मान भी लिया जाए कि तुम वो नहीं हो
जो मामूली जरूरतों के लिए
कायरों की तरह लेते हो भीड़ की आड़
कि तुम डरे थे, आशंकित थे अपनों के लिए
कि जायज था तुम्हारा डर
तो भी सिस्टम की असफलता को
किसी एक के माथे कैसे थोप दिया
उस वक्त
जब तुम उस भीड़ का हिस्सा बने और की हत्याएँ
क्या कर सकते थे तुम अपनी आड़ में
क्या तुम्हारा गुस्सा
वास्तव में किसी अन्याय के खिलाफ था
जिस दिन तुम्हारे हाथ
आततायी हाथों में तब्दील हो गए
उस दिन की रात घर तो नहीं लौटे होगे तुम
और अगर लौटे भी होगे तो
तो घर के किसी कोने को पकड़ कर सिमट गए होगे
बत्तियों को कर दिया होगा बंद
और बीबी-बच्चों को, माओं-बहनों को कर दिया होगा पास आने से मना
फिर तुम अँधेरे में बेआवाज रोये भी होगे
जब तुमने सोंचा होगा
उस आदमी और उसकी आँखों में उभरे खौफ और लाचारी के बारे में
और तुम्हें डर भी लगा होगा
जब तुमने उसकी जगह खुद को रख कर देखा होगा
अगली रोज अखबार पढने के बाद
या मैं गलत सोंच रहा हूँ
तुम और तुम्हारे जैसों के बारे में
तुम वो हो
वही जो जीतने के लिए,
सत्ता बनाने या बचाने के लिए
मारने या रेप करने के लिए
या फिर अपनी मामूली जरूरतों के लिए
बनाते हो एक भीड़
और उसकी आड़ में करते हो हत्याएं
तुमने ईजाद की है हत्या की ये तकनीक
जहाँ क़ानून के साथ कुश्ती खेली और जीती जा सकती है
अगर मान भी लिया जाए कि तुम वो नहीं हो
जो मामूली जरूरतों के लिए
कायरों की तरह लेते हो भीड़ की आड़
कि तुम डरे थे, आशंकित थे अपनों के लिए
कि जायज था तुम्हारा डर
तो भी सिस्टम की असफलता को
किसी एक के माथे कैसे थोप दिया
उस वक्त
जब तुम उस भीड़ का हिस्सा बने और की हत्याएँ
क्या कर सकते थे तुम अपनी आड़ में
क्या तुम्हारा गुस्सा
वास्तव में किसी अन्याय के खिलाफ था
2 comments:
मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ.... आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है
Bedad marmik....
Shayad ye bhi aapko pasand aayen- Prevention of radioactive pollution , Noise pollution images
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