Thursday, February 25, 2010

अच्छी चीजों का इंतज़ार कितना अच्छा होता है न !

वो ठीक मेरे
एहसास से लग कर सोती है आजकल
और मैं
अपनी नींद में उसे देखते हुए

कभी-कभी जब

जाग जाते हैं मेरे एहसास उससे पहले
तो रोकता हूँ उनका उठना
ताकि नाजुक नींद टिकी रहे उसकी
और मैं देख सकूँ वही सब जाग कर
जो देखता हूँ सोते हुए

उसकी नींद यूँ लगती है जैसे
भीतर हीं भीतर
कर रहा होऊं मैं
उसके ख्वाब से कोई ठिठोली
और उतर रही हो लाली उसके गाल पर

कभी-कभी हम रजाई बन जाते हैं
और समेटते हैं सिहरन
एक दूसरे की,
हमें देख कर सूरज भी आसमान लपेट लेता है
और सोया रहता है देर तक

मैं चाहता हूँ कि
वो जागे कभी गर मुझसे और सूरज से पहले
तो उठे नहीं बिस्तर से
बस करवट लेकर कविता में आ जाए

ताकि सबसे सुन्दर प्रेम कविता लिखी जा सके उस दिन

और मैं जानता हूँ कि
ये जरा भी मुश्किल नहीं है
सिर्फ उसे पता भर लगने की देर है

पर मैं बताने के बजाय इंतज़ार करता हूँ

अच्छी चीजों का इंतज़ार कितना अच्छा होता है न !

Saturday, February 20, 2010

एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे

जहाँ तुम्हारी नींद हाथ रखती है
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा

अब जबकि सारी दुनिया ओट हो चुकी है
आवाज खींच के तुमने जो तानी है, उससे
मैं बेसब्र हो रहा हूँ कि
कितनी जल्दी तुम झुक जाओ तानपुरे पे
मुझे धुन देने के वास्ते,
और मैं निःशब्द हो जाऊं

मैं बहता हूँ पर शजर नहीं हिलते
खाली-खाली रह जाती है मेरी छुअन,
जिस्म जीवन का मिल जाए
अंक में भर लिया जाऊं गर तेरे एक बार
इसी इंतज़ार में हूँ बस

खाली हो गया था किसी समय,
कोई जगह सुनसान हो गयी थी मेरे अन्दर
और फिर भरा नहीं गया कभी
मेरी रिक्तता कों अब
तुम्हारी रूह मिले, तो चैन मिले

कुछ करो
कुछ करो अब कि
अगली बार जब पलकें झपक कर उठें
तो तुम्हारा आगोश सामने हों

एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे

Friday, February 19, 2010

मुहब्बत मानो फिर लौटी है

मुहब्बत मानो फिर लौटी है

बांहों को एक नाजुक से आगोश की आमद है
धडकनों को कुछ और धडकनों की आहट है

चाँद फिर कंगन सा है
और सितारे फिर आँचल सा

यूँ लगता है कि
वो मेरी उंगलियाँ ले जा कर
अपने हारमोनिअम पे टिका लेने वाली है
और मैं पिआनो की तरह बज जाने वाला हूँ

मैं जानता हूँ कि
इस भरी हुई रात में
मैं लिखूं गर कोई नज्म
तो उसके हर सफ्हे में मौजूद होओगी तुम
और तुम्हारी मुहब्बत भी

पर लिखने से पहले
याद आ जाती है वो पुरानी नज्में मेरी
जहाँ से चली गयी थी
वो और उसकी मुहब्बत...

Sunday, February 14, 2010

जब सुनसान हो जाती है पृथ्वी

तुम बची रहोगी
उन पुरानी
उतार दी गयी कपड़ों की सिलवटों में
और महसूस हो जाओगी अचानक
जब किसी दिन
यूँ हीं ढूंढ रहा होऊंगा कोई कपड़ा
कुछ पोंछने के लिए,
ये मैंने सोंचा नहीं था

मुझे ये बिलकुल नहीं लगा था
कि इस सतही वक़्त में
जब प्यार इतना उथला हो गया है,
कोई इतने लम्बे अरसे तक
एक सिलवट में रहना चाहेगा इतना गहरा
वो भी तब जब
महसूस लिए जाने की संभावना बिलकुल नगण्य हो

जबकि वक़्त ने छोड़ दिया है रिश्तों की परवाह करना
और बनने से पहले हीं टूटने लगी हैं चीजें
तुम इतनी संजीदगी से
कैसे बचा सकती हो रेत का घड़ा
और पानी आँखों में

मुझे ये भी नहीं पता
तुम्हे अचानक सिलवटों में उस रोज
पा लेने के बाद
यूँ हीं बिना बात,
बिना किसी ताज़ी पृष्ठभूमि के
मुझे जब-तब रुलाई आ जाया करेगी
ख़ास कर उन रातों कों
जब सुनसान हो जाती है पृथ्वी

तुम जब
थी हकीकत में,
इतनी तो नहीं थी संजीदा !!

Friday, February 12, 2010

फैशन, मैं और मेरा डर

पुरानापन फैशन में था
पुरानी हवेलियाँ और किले
नए तरीके से पुराने बनाये रखे जाते थे,
उजाड़-झंखाड़ हो चुकी इमारतों पर
लाखो डॉलर खर्च करके
उनके नवीकरण के दौरान
उनका पुरानापन बचा लिया जाता था

नए लोगों में पुरानी चीजों के लिए बड़ा लगाव था
मगर सिर्फ चीजों में
पुराने लोगों में से उन्हें 'बास' आती थी


अमीर लोगों के बीच
गरीब लगने का फैशन था
वे फटी और घिसी हुई जींस ऊँचे दामों में खरीदते थे
और गरीब होने का अमीर सुख उठाते थे
वे वर्तमान में हीं 'एंटिक' हो जाने के प्रयास में थे
इसलिए अक्सर पुराने 'स्टाइल' में नजर आते थे

फैशन के दीवाने लोग
इस बात की बहुत अधिक फिक्र करते थे
कि वे बेफिक्र दिखें
वे 'रिंकल' वाले कपडे खरीदते थे,
बेतरतीब बाल रखते थे
और उनके बीच 'प्रेस' न करने का फैशन था
इसी तरह वे कमर से बहती हुई पैंट पहनते थे
मगर अक्सर
इंसानियत के नाले में बहते जाने के बारे में वे बेखबर होते थे

शो को रियल बनाने का फैशन था
रियलिटी शो में भावुकता के 'सीन' लिखे और फिल्माए जाते थे
वहाँ बहुत अदबी लोग, बेअदबी पे उतर आते थे
कुछ यूँ हँसते थे कि समाज की नब्ज हिल जाती थी
उनमे से कुछ यूँ रो पड़ते थे
जैसे उन्हें पता हीं न हो
कि भारत की एक तिहाई आबादी
इतने तरह के दर्दों में होती है
कि मुश्किल से हीं कभी रो पाती है
दरअसल भावुक होना फैशन में था
और वे डरे हुए थे कि कहीं उनके पास बैठा व्यक्ति
उससे भी छोटी बात पे उससे ज्यादा न रो दे

इन सबको देखता कवि सोंचता है
कि एक घर जो वास्तव में बहुत पुराना है
कि एक आदमी जिसकी जींस वास्तव में फटी है
कि एक आदमी जिसके कपडे वास्तव में मुचड़े हैं
और बाल बिखरे हैं
और जो दर्द से रो रहा है
वो इनके समकक्ष क्यों खड़ा नहीं है

हालांकि कवि कों ये डर भी है
कि कहीं ऐसा न हो
कि ऐसा सोंचना फैशन में हो
और इसलिए वो सोंचता हो...

Monday, February 8, 2010

बार-बार 'चेन पुलिंग' हो रही है ...

*
बार-बार 'चेन पुलिंग' हो रही है

जिंदगी
थोड़ी देर के लिए रूकती है
और फिर चल देती है

बस हर बार
चेन पुलिंग होने पे
कुछ लोग जिन्दगी से उतर जाते है

**
शहर,
जहाँ गुजारते हैं हम
अपना लहू, अपनी मांस-मज्जा
उम्र भर देते रहते हैं
अपनी त्वचा का प्रोटीन
इसके प्रदुषण कों देते हैं अपना फेफड़ा
अपनी धमनियां व शिराएँ

उस शहर की बाबन हाथ की आंत है
और हमारी औकात सिर्फ साढ़े तीन हाथ की है

***
वक़्त हीं तय करेगा
चीजों का
जरूरी या गैर-जरूरी पना
या रेट करेगा
स्केल पे घटनाओं की तीव्रता
और उसके आधार पे
बचाएगा या खर्च करेगा खुद को

हमारे हाथ में लेते हीं वो रेत हो जाएगा

****

आज टूट गया है,
आइना इश्क का
रूह देखती आयी थी एक उम्र तलक चेहरा जिसमे

बदन छोड़ गया है साथ
बेबा हो गयी है रूह!

*****
कुछ रूहें
जो उलझ जाती होंगी पापकर्म में
उस परलोक में
भर जाता होगा जिनके पापों का घड़ा

वे रूहें पाती होंगी इस पृथ्वी पे
एक बेहद कोमल ह्रदय वाला बदन
और ईमानदार मन
ताकि वे दुःख उठायें लगातार.

Wednesday, February 3, 2010

अभी मैं कविता के एक मुश्किल वक्फ़े में हूँ

अभी मैं
कविता के उस मुश्किल वक्फ़े में हूँ
जहाँ अंतर्द्वंद मांग करता है एक सिगरेट
और आस-पास के सारे लब्ज
कन्नी काटते लगते हैं

हालांकि
खुल कर सामने नहीं आ रहे अभी वे
पर उनकी आँखों में इनकार की स्पष्ट रेखा है
और मैं भी ज्यादा जोर नहीं दे रहा उनपे
ये सोंच कर कि
कहीं गुरेर न दे वे आँख अपनी

दरअसल मैंने सुना है
उन्हें बतियाते हुए
वे भरे हैं रोष से
प्रेम के बेहद गैर-जिम्मेदाराना रवैये के बारे में,
प्रेम से लुप्त होती जा रही पारदर्शिता
और प्रेम के लगातार दागदार होते जाने पर

उनका कहना है
कि प्रेम कवितायेँ एक झांसा है
जो लाती है
कुछ टूटे व्यक्तियों की उम्मीदों में गैर जरूरी उछाल
और बढ़ा देती है उनके समंदर की आँखों का वजन

कि प्रेम कवितायें
प्रेम जैसी किसी चीज की
वास्तविक उपस्थिति के बारे में
बस एक धोखा भर है

कि बचपन और किशोरावस्था के बीच
सिकुड़ती जा रही दूरी के बीच खड़े मासूमों की
मौत का सबब हैं ये प्रेम कवितायें

वे मुझे नकारते हैं
मेरी किसी भी ऐसी कोशिश के विरोध में
जिसमें प्रेम कों 'देवदासिया' दिखाया जाने वाला होता है

आगे उनकी योजना है
कि किसी भी ऐसी कविता या
ऐसे षड़यंत्र रच रहे कवि के खिलाफ
लब्ज लामबंद होंगे
उन्हें कवि कर्म से निष्कासित किया जाएगा
या नहीं तो कम से कम
लम्बे समय तक
मुअत्तल किया जाएगा

अभी मैं
कविता के उस मुश्किल वक्फे में हूँ
जहाँ प्रेम के होने और न होने पर भारी अंतर्द्वंद है
लब्ज उद्वेलित हैं
और मैं खोज रहा हूँ एक सिगरेट
और सोंच रहा हूँ
प्रेम और प्रेम कविता में से कौन पहले जा रहा है...