मुहब्बत मानो फिर लौटी है
बांहों को एक नाजुक से आगोश की आमद है
धडकनों को कुछ और धडकनों की आहट है
चाँद फिर कंगन सा है
और सितारे फिर आँचल सा
यूँ लगता है कि
वो मेरी उंगलियाँ ले जा कर
अपने हारमोनिअम पे टिका लेने वाली है
और मैं पिआनो की तरह बज जाने वाला हूँ
मैं जानता हूँ कि
इस भरी हुई रात में
मैं लिखूं गर कोई नज्म
तो उसके हर सफ्हे में मौजूद होओगी तुम
और तुम्हारी मुहब्बत भी
पर लिखने से पहले
याद आ जाती है वो पुरानी नज्में मेरी
जहाँ से चली गयी थी
वो और उसकी मुहब्बत...
15 comments:
'par likhne se pehle yaad aa jaati hai wo purani najme meri,
jahan se chali gayi thi wo aur uski mohabbat'
bahut hi acchi rachna,om ji.
बहुत उम्दा!
वो और उसकी मोहब्बत..
और इंतजार करती हुई मुहब्बत मानो फ़िर लौटी है..
डूब गये हम तो इनमें..
बहुत ही खूबसूरत भाव ।
मै जानता हूँ ------ ओम जी एक बार फिर से कमाल की रचना ले कर आये आप। दिल को छू गयी
शुभकामनायें
om bhai...
chot khaaye huye lagte ho...
sab sahi hai na???
पर लिखने से पहले
याद आ जाती है वो पुरानी नज्में मेरी
जहाँ से चली गयी थी
वो और उसकी मुहब्बत...
क्या बात है ओम जी. बहुत नाज़ुक नज़्म हुई है.
यूँ लगता है कि
वो मेरी उंगलियाँ ले जा कर
अपने हारमोनिअम पे टिका लेने वाली है
और मैं पिआनो की तरह बज जाने वाला हूँ
.... "छू लो बदन मगर इस तरह जैसे सुरीला साज़ हो"
प्रसून जोशी ने साँसों को साँसों में ढलने दो जरा (हम - तुम) में यही बात कही है.
बहुत Pratical ख्याल है .).).)
मैं जानता हूँ कि
इस भरी हुई रात में
मैं लिखूं गर कोई नज्म
तो उसके हर सफ्हे में मौजूद होओगी तुम
और तुम्हारी मुहब्बत भी.
भूलना कहाँ उसे बस में है,
जब उसकी खुश्बू नफ़स नफ़स में है.
पर लिखने से पहले
याद आ जाती है वो पुरानी नज्में मेरी
जहाँ से चली गयी थी
वो और उसकी मुहब्बत...
आपकी नज़म में..
वसल की रुत भी गयी,हिज़र के मौसम भी गये.हमने इक उम्र में देखे है जमाने कितने..
बहुत खूब..
khubsurat hamesha ki tarah
बहुत खूब !!
om ji
har baar itni umda rachna hotihai ki shabd khamosh ho jate hain..........prem ke sagar mein doobi huyi rachna .
बहुत ही बेहतरीन शब्द रचना ।
विशुद्ध मोहब्बत ।
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