जहाँ तुम्हारी नींद हाथ रखती है
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा
अब जबकि सारी दुनिया ओट हो चुकी है
आवाज खींच के तुमने जो तानी है, उससे
मैं बेसब्र हो रहा हूँ कि
कितनी जल्दी तुम झुक जाओ तानपुरे पे
मुझे धुन देने के वास्ते,
और मैं निःशब्द हो जाऊं
मैं बहता हूँ पर शजर नहीं हिलते
खाली-खाली रह जाती है मेरी छुअन,
जिस्म जीवन का मिल जाए
अंक में भर लिया जाऊं गर तेरे एक बार
इसी इंतज़ार में हूँ बस
खाली हो गया था किसी समय,
कोई जगह सुनसान हो गयी थी मेरे अन्दर
और फिर भरा नहीं गया कभी
मेरी रिक्तता कों अब
तुम्हारी रूह मिले, तो चैन मिले
कुछ करो
कुछ करो अब कि
अगली बार जब पलकें झपक कर उठें
तो तुम्हारा आगोश सामने हों
एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे
22 comments:
जहाँ तुम्हारी नींद हाथ रखती है
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा
यह भी सत्य है और
एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे
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तादात्म की लय को तलाशती सुन्दर रचना
dilchasp hai....
मिल जा कही समय से परे वाली बात हो गयी..
जहाँ तुम्हारी नींद हाथ रखती है
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा
ओम जी हर बार ऐसी रचना लिखते हैं कि कई बार पढ कर भी मन नही भरता ।उसकी गहराई को नापना मुश्किल हो जाता है अद्भुत रचना के लिये बधाई शुभकामनायें
मन को छूती हुई रचना.
जहाँ तुम्हारी नींद हाथ रखती है
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा
क्या कहूं? हमेशा की तरह नि:शब्द.
manobhavna ka sunder shabd chitra.
Bahut anoothi rachana!
आपने हमेशा की तरह निःशब्द कर दिया....
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा
waah
एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे
kamaal ke shabad
dilfareb nazm
one of the best from u...
khubsurat ahsas
hameshaa kee tarah behatareen
गहरे भावों की गहन कविता... और 'वे ऑफ़ राइटिंग' तो बस कमाल है ! बधाई !!
--आ.
जहाँ तुम्हारी नींद हाथ रखती है
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा
यह भी सत्य है और
एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे,
बहुत ही सुन्दर शब्द भावमय प्रस्तुति ।
यह "अब जबकि" ऐसा शब्द है जिसपर मैं अक्सर अटकता हूँ, खटकता हूँ... एक बात फिर भी मैंने इसका प्रयोग किया है...
beharhaal bahut sundar... good one bhai...,
एक शांत सी हवा जो कभी आंधी थी अपने पुराने दिनों को याद करती है ?
और याद करती है बादलों का साथ जिन्होंने उसे नमी दी थी.
बेशक अब शजर नहीं हिलते पर उम्मीद से पलकें बार बार बंद होती हैं और खुलती हैं...
जहाँ तुम्हारी नींद हाथ रखती है
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा
अच्छी लगी ये पंक्तियाँ !
जिस्म जीवन का मिल जाए
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मेरी रिक्तता कों अब
तुम्हारी रूह मिले
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मरुस्थल में पानी तलाशता मृग हो जैसे!
वाह, प्रेम की पराकाष्ठा तो तानपुरा है | निशब्द पर प्रेमी के हाथ रखते ही बजने को तैयार | गजब की कल्पना | लिखे रखें जी |
शाम पीली रौशनी की चादर लपेटे
क्षितिज पर आयी तो
सूरज ने आंखे फेर ली
क्योकि सुरज को
आंखो को चौधिया देने वाली रौशनी से प्रेम था
सूरज को अपनी रौशनी के साथ
सात समन्दर पार जाना था
और शाम साहिल बैठी
उसे निहारती रही
तन्हा........
एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे,
बहुत ही सुन्दर शब्द भावमय प्रस्तुति ।
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