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Tuesday, February 8, 2011

रूह में नंगे जाना होता है...

मैं चलता गया था उसकी तरफ
निरंतर
दूरी कितनी तय हुई मालूम नही

रास्ते में मै कही ठहरा नही जिस्म पर
और वो भी
रूह से पहले तक
दिखायी नही दी एक बार भी

अचानक से हुआ कि छू लूं
जैसे ही दिखी पर
अदृश्य हो गयी हाथ बढाते ही
तब लगा मैं
लिबास साथ लिये आ गया था

लौटना पड़ा मुझे
रूह में नंगे जाना होता है...

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Saturday, February 20, 2010

एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे

जहाँ तुम्हारी नींद हाथ रखती है
वहीँ मैं हो गया हूँ खड़ा
इस उम्मीद में कि
आज नहीं तो कल, तेरा ख्वाब हो जाऊँगा

अब जबकि सारी दुनिया ओट हो चुकी है
आवाज खींच के तुमने जो तानी है, उससे
मैं बेसब्र हो रहा हूँ कि
कितनी जल्दी तुम झुक जाओ तानपुरे पे
मुझे धुन देने के वास्ते,
और मैं निःशब्द हो जाऊं

मैं बहता हूँ पर शजर नहीं हिलते
खाली-खाली रह जाती है मेरी छुअन,
जिस्म जीवन का मिल जाए
अंक में भर लिया जाऊं गर तेरे एक बार
इसी इंतज़ार में हूँ बस

खाली हो गया था किसी समय,
कोई जगह सुनसान हो गयी थी मेरे अन्दर
और फिर भरा नहीं गया कभी
मेरी रिक्तता कों अब
तुम्हारी रूह मिले, तो चैन मिले

कुछ करो
कुछ करो अब कि
अगली बार जब पलकें झपक कर उठें
तो तुम्हारा आगोश सामने हों

एक बार अपने आगोश दृश्य कर दो मुझे

Monday, February 8, 2010

बार-बार 'चेन पुलिंग' हो रही है ...

*
बार-बार 'चेन पुलिंग' हो रही है

जिंदगी
थोड़ी देर के लिए रूकती है
और फिर चल देती है

बस हर बार
चेन पुलिंग होने पे
कुछ लोग जिन्दगी से उतर जाते है

**
शहर,
जहाँ गुजारते हैं हम
अपना लहू, अपनी मांस-मज्जा
उम्र भर देते रहते हैं
अपनी त्वचा का प्रोटीन
इसके प्रदुषण कों देते हैं अपना फेफड़ा
अपनी धमनियां व शिराएँ

उस शहर की बाबन हाथ की आंत है
और हमारी औकात सिर्फ साढ़े तीन हाथ की है

***
वक़्त हीं तय करेगा
चीजों का
जरूरी या गैर-जरूरी पना
या रेट करेगा
स्केल पे घटनाओं की तीव्रता
और उसके आधार पे
बचाएगा या खर्च करेगा खुद को

हमारे हाथ में लेते हीं वो रेत हो जाएगा

****

आज टूट गया है,
आइना इश्क का
रूह देखती आयी थी एक उम्र तलक चेहरा जिसमे

बदन छोड़ गया है साथ
बेबा हो गयी है रूह!

*****
कुछ रूहें
जो उलझ जाती होंगी पापकर्म में
उस परलोक में
भर जाता होगा जिनके पापों का घड़ा

वे रूहें पाती होंगी इस पृथ्वी पे
एक बेहद कोमल ह्रदय वाला बदन
और ईमानदार मन
ताकि वे दुःख उठायें लगातार.

Saturday, January 9, 2010

हमारे बीच केवल मेरा प्रेम उभयनिष्ठ है!

*
थोडी देर वो
दस्तक देती रही
बंद बदन पर

फिर इन्तेज़ार किया थोडा
खुलने का

फिर दी दस्तक
फिर इन्तेज़ार किया

और आखिरकार बैठ गयी
बदन के चौखटे पे

बदन, अक्सर रूहों की नहीं सुनते!


**
स्वप्नों की
सारी नमी सोख ली
वक़्त ने

सूखे सपने रगड़ खा कर
एक दिन जला गए
सारी नींद.


***
घडी भर की मुलाकात में
वो जो
दे जाती है

उसका न कोई नाम है
उसके लिए न कोई शब्द है
और न हीं
किसी भाषा में
उसका अनुवाद संभव है।


****
न चाहते हुए भी
मैं रचता हूँ वही आकार
जो तुम लिए हुई हो

न चाहना इसलिए,
क्यूंकि
हमारे बीच
केवल मेरा प्रेम उभयनिष्ठ है


*****
तुम कुछ देर और गर
अपनी ऋतुओं से ढके रखती
तो
मैं बच सकता था

वो शायद
एक जन्म की बात और थी बस।


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समय कठिन हो जाएगा
जर्रा-जर्रा खिलाफत पे उतर जायेगा
विपदाएं जाल बुन देंगी हर तरफ

मैं जानती हूँ
जब वह आने को होगा
शहर को जोड़ता
मेरे कस्बे का एकमात्र पुल ढह जायेगा