मैं चलता गया था उसकी तरफ
निरंतर
दूरी कितनी तय हुई मालूम नही
रास्ते में मै कही ठहरा नही जिस्म पर
और वो भी
रूह से पहले तक
दिखायी नही दी एक बार भी
अचानक से हुआ कि छू लूं
जैसे ही दिखी पर
अदृश्य हो गयी हाथ बढाते ही
तब लगा मैं
लिबास साथ लिये आ गया था
लौटना पड़ा मुझे
रूह में नंगे जाना होता है...
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Tuesday, February 8, 2011
Monday, June 22, 2009
खिल कर गमले की मिट्टियो में
लिहाफ हो जाता है प्यार तेरा
ओढ के लेटता हूँ जब सर्दियो में
नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो
खिल कर गमले की मिट्टियो में
गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे
और खरोंचे मेरी हड्डियो में
ओढ के लेटता हूँ जब सर्दियो में
नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो
खिल कर गमले की मिट्टियो में
गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे
और खरोंचे मेरी हड्डियो में
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