लिहाफ हो जाता है प्यार तेरा
ओढ के लेटता हूँ जब सर्दियो में
नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो
खिल कर गमले की मिट्टियो में
गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे
और खरोंचे मेरी हड्डियो में
24 comments:
नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
बहुत ही गहरे भाव, बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई
लिहाफ हो जाता है प्यार तेरा
ओढ के लेटता हूँ जब सर्दियो में
भाई अनोखा एहसास है इन पंक्तियों में। चलिए आदत से मजबूर मैं भी कुछ जोड़ दूँ-
इस तरह इश्क अगर चलता रहा।
छा जायेंगे हम भी सुर्खियों में।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
वह ॐ जी..बहुत ही सुन्दर रचना ..
dooriyan jab ishq me itnee badh jaaye
ki haddiyon me khronchen pad jaaye
tab
aisee abhinav kavita ka phool khilta hai
jisse padhnne wale ko suqoon milta hai
BAHUT UMDA RACHNA ! BADHAAI !
वाह !! अच्छी रचना।
तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे
और खरोंचे मेरी हड्डियो में
मित्र ॐ जी आप के कमेन्ट मेरे लिए किसी पुरूस्कार से कम नहीं है जब भी आप कोई कमेन्ट करते है येसा लगता है की मेरी ठीक है आप के ब्लॉग पर आज पहली बार आया हूँ और येसी अद्भुद रचनाये नत मस्तक हूँ क्षमा प्रार्थी हूँ कुछ जोड़ने के लिए
गफलत में क्योँ क्या तुमसे दूर रह कर हमें ख़ुशी मिलेगी ,,
न मानोंतो उघाड़ कर देख लो बदन एक एक अश्क की निशानी मिलेगी
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
" खुबसूरत जज्बात और पंक्तियाँ"
regards
बेहतरीन अभिव्यक्ति,
बधाई हो
तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे और खरोंचे मेरी हड्डियो में
के भाव अति सुन्दर, nice post
गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
kya baat hai om bhai. bahut khoob!!!!
गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
बेहतरीन ओम जी बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...बधाई....
नीरज
वाह!!! भावनाओं का कितना सजीव चित्रण किया है आप ने... और कितनी संजीदगी है इन लाइनों में.. सचमुच मजा आ गया...ओम आर्य जी
वाह बहुत सुन्दर रचना है बधाइ
ओम जी,
कल की पोस्ट में ही गमले उगती धूप और कलमी धूप की बात और आज कुछ दूसरा ही मिजा़ज पाया :-
मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो खिल कर गमले की मिट्टियो में
गुनगुनी धूप में छत पे आ कर बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
मजा आ गया, बहुत खूब।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
वाह...कितना लाजवाब लिखा है............ आस पास बिखरे शब्द और एहसास से लिखी रचना हर छंद निखरा हुवा है
नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
bahut hi sundar bhaw ...........yado me simati kuchh tanhaeeya jo hasin hai.......bahut khub
मन में जब वह प्रियतम बसा हो तो पूरी कायनात में सिर्फ वही वह नजर आता है.....इस सुन्दर पवित्र भाव को बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति दी आपने...
लिहाफ हो जाता है प्यार तेरा
ओढ के लेटता हूँ जब सर्दियो में
नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
bahut mast panktian, behatareen. badhai.
मुझे तो बस यही पंक्तियाँ अच्छी लगीं:
"मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो
खिल कर गमले की मिट्टियो में"
और बहुऊऊऊऊऊऊत ही अच्छी लगीं।
khoosoorat rachna hai.
गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
-----
बहुत ही सुन्दर एहसास -----
मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो
खिल कर गमले की मिट्टियो में
good one
तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे
और खरोंचे मेरी हड्डियो में
--वाह! वाह! बेहतरीन!
आपकी हर एक रचना इतनी ख़ूबसूरत है कि कहने के लिए अल्फाज़ कम पर जाते हैं!
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