Monday, June 22, 2009

खिल कर गमले की मिट्टियो में

लिहाफ हो जाता है प्यार तेरा
ओढ के लेटता हूँ जब सर्दियो में

नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में

मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो
खिल कर गमले की मिट्टियो में

गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में

तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे
और खरोंचे मेरी हड्डियो में

24 comments:

सदा said...

नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
बहुत ही गहरे भाव, बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये बधाई

श्यामल सुमन said...

लिहाफ हो जाता है प्यार तेरा
ओढ के लेटता हूँ जब सर्दियो में

भाई अनोखा एहसास है इन पंक्तियों में। चलिए आदत से मजबूर मैं भी कुछ जोड़ दूँ-

इस तरह इश्क अगर चलता रहा।
छा जायेंगे हम भी सुर्खियों में।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

अजय कुमार झा said...

वह ॐ जी..बहुत ही सुन्दर रचना ..

Unknown said...

dooriyan jab ishq me itnee badh jaaye
ki haddiyon me khronchen pad jaaye
tab
aisee abhinav kavita ka phool khilta hai
jisse padhnne wale ko suqoon milta hai

BAHUT UMDA RACHNA ! BADHAAI !

संगीता पुरी said...

वाह !! अच्‍छी रचना।

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे
और खरोंचे मेरी हड्डियो में
मित्र ॐ जी आप के कमेन्ट मेरे लिए किसी पुरूस्कार से कम नहीं है जब भी आप कोई कमेन्ट करते है येसा लगता है की मेरी ठीक है आप के ब्लॉग पर आज पहली बार आया हूँ और येसी अद्भुद रचनाये नत मस्तक हूँ क्षमा प्रार्थी हूँ कुछ जोड़ने के लिए
गफलत में क्योँ क्या तुमसे दूर रह कर हमें ख़ुशी मिलेगी ,,
न मानोंतो उघाड़ कर देख लो बदन एक एक अश्क की निशानी मिलेगी
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

seema gupta said...

नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
" खुबसूरत जज्बात और पंक्तियाँ"
regards

विनोद कुमार पांडेय said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति,
बधाई हो

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे और खरोंचे मेरी हड्डियो में
के भाव अति सुन्दर, nice post

Prem Farukhabadi said...

गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
kya baat hai om bhai. bahut khoob!!!!

नीरज गोस्वामी said...

गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में

बेहतरीन ओम जी बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...बधाई....
नीरज

Dr. Ravi Srivastava said...

वाह!!! भावनाओं का कितना सजीव चित्रण किया है आप ने... और कितनी संजीदगी है इन लाइनों में.. सचमुच मजा आ गया...ओम आर्य जी

निर्मला कपिला said...

वाह बहुत सुन्दर रचना है बधाइ

मुकेश कुमार तिवारी said...

ओम जी,

कल की पोस्ट में ही गमले उगती धूप और कलमी धूप की बात और आज कुछ दूसरा ही मिजा़ज पाया :-

मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो खिल कर गमले की मिट्टियो में

गुनगुनी धूप में छत पे आ कर बचा लिया करो मुझे सर्दियों में

मजा आ गया, बहुत खूब।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

दिगम्बर नासवा said...

गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में

वाह...कितना लाजवाब लिखा है............ आस पास बिखरे शब्द और एहसास से लिखी रचना हर छंद निखरा हुवा है

संध्या आर्य said...

नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने और पलट लिया करता हूँ उदासियों में

bahut hi sundar bhaw ...........yado me simati kuchh tanhaeeya jo hasin hai.......bahut khub

रंजना said...

मन में जब वह प्रियतम बसा हो तो पूरी कायनात में सिर्फ वही वह नजर आता है.....इस सुन्दर पवित्र भाव को बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति दी आपने...

Yogesh Verma Swapn said...

लिहाफ हो जाता है प्यार तेरा
ओढ के लेटता हूँ जब सर्दियो में

नजरो में रखता हूँ तेरी यादो के पन्ने
और पलट लिया करता हूँ उदासियों में
bahut mast panktian, behatareen. badhai.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

मुझे तो बस यही पंक्तियाँ अच्छी लगीं:
"मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो
खिल कर गमले की मिट्टियो में"

और बहुऊऊऊऊऊऊत ही अच्छी लगीं।

नवनीत नीरव said...

khoosoorat rachna hai.

M VERMA said...

गुनगुनी धूप में छत पे आ कर
बचा लिया करो मुझे सर्दियों में
-----
बहुत ही सुन्दर एहसास -----

प्रिया said...

मौसम को यूँ बेकाबू किया न करो
खिल कर गमले की मिट्टियो में

good one

Udan Tashtari said...

तेरी दूरी ने बनायी खराशे जिस्म पे
और खरोंचे मेरी हड्डियो में

--वाह! वाह! बेहतरीन!

Urmi said...

आपकी हर एक रचना इतनी ख़ूबसूरत है कि कहने के लिए अल्फाज़ कम पर जाते हैं!