कविता...तेरे शहर में फिर आसरा ढूंढने निकला हूँ!
एक देह वहां है
पर उसे वो अपना मान नही रही
एहसास की इंतेहा है आपकी इस छोटी सी कविता में। इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।-Zakir Ali ‘Rajnish’ { Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत गहरी संवेदना----गुलाबी कोंपलें
mohabbat isee ka naam hai guru....yahan ek aur ek na do hota hai, na gyarah hota hai aur na hi ek hota hai ....mohabbat me toh ek aur ek ziro hota hai...arthat shoonyaTOH TAAKTE RAHO SHOONYA ME AUR KARO MAZA MOHABBAT KA...ha ha ha ha
sundar....!
देंह और मन का रिश्ता अजीब है । बेतरह कसकता हुआ । आभार प्रविष्टि के लिये ।
रुह के इन्तजार का एहसास अपने मे सारी सम्वेदना लिये हुये है
wakai aapne kaaphi sunder blog bana rakha hai...aaker kaaphi achchha laga..
चंद पंक्तियों में तन-मन की कशमकश को बखूबी व्यक्त किया है.
कितना डूबकर लिखा है आपने.....अनुपम....साभारहमसफ़र यादों का.......
kya kahun................nishabd hun.dil ko andar tak bindh gayi.
om ji sunder....maine galti sudhaar li 'jindgi jeena hai' comment ke lie dhanywaad
एहसासो को कुट-कुटकर भर दिया है आपने इस छोटी सी रचना मे ............शायद यही प्रकृति होती है रूह और शरीर का..........बहुत ही खुबसूरत......
wah wah wah. anupam.
गहरे एहसास कराती शशक्त रचना............. क्या कहा है.........सच में किसी भी देह को अपना कैसे मन ले वो रूह जो किसी दूसरी देह को भी प्यार करती है
boht udas kavita...
सुंदर भाव हैं। बिल्कुल सजीव चित्रण।
baat kahne ki kala kavi ka vyaktiv paribhashit karti hai. dil se dhanybaad.
मौन के घर मे ऐसी ही संवेदनायें उगती हैं और कहीं गहरे मे कुछ एहसास दे जाती हैं आभार््
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19 comments:
एहसास की इंतेहा है आपकी इस छोटी सी कविता में। इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत गहरी संवेदना
----
गुलाबी कोंपलें
mohabbat isee ka naam hai guru....
yahan ek aur ek na do hota hai, na gyarah hota hai aur na hi ek hota hai ....mohabbat me toh ek aur ek ziro hota hai...arthat shoonya
TOH TAAKTE RAHO SHOONYA ME AUR KARO MAZA MOHABBAT KA...ha ha ha ha
sundar....!
देंह और मन का रिश्ता अजीब है । बेतरह कसकता हुआ । आभार प्रविष्टि के लिये ।
रुह के इन्तजार का एहसास अपने मे सारी सम्वेदना लिये हुये है
wakai aapne kaaphi sunder blog bana rakha hai...aaker kaaphi achchha laga..
चंद पंक्तियों में तन-मन की कशमकश को बखूबी व्यक्त किया है.
कितना डूबकर लिखा है आपने.....अनुपम....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
kya kahun................nishabd hun.
dil ko andar tak bindh gayi.
om ji sunder....maine galti sudhaar li 'jindgi jeena hai' comment ke lie dhanywaad
एहसासो को कुट-कुटकर भर दिया है आपने इस छोटी सी रचना मे ............शायद यही प्रकृति होती है रूह और शरीर का..........
बहुत ही खुबसूरत......
wah wah wah. anupam.
गहरे एहसास कराती शशक्त रचना............. क्या कहा है.........सच में किसी भी देह को अपना कैसे मन ले वो रूह जो किसी दूसरी देह को भी प्यार करती है
boht udas kavita...
सुंदर भाव हैं। बिल्कुल सजीव चित्रण।
baat kahne ki kala kavi ka vyaktiv paribhashit karti hai. dil se dhanybaad.
मौन के घर मे ऐसी ही संवेदनायें उगती हैं और कहीं गहरे मे कुछ एहसास दे जाती हैं आभार््
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