Thursday, June 18, 2009

अपनी देह का इंतज़ार करते!

तुम चली गई थी
पर तुम्हारे जाने के बाद
अब भी वहीँ
पार्क की उसी उदास बेंच पर
बैठी हुई है रूह
अपनी देह का इंतज़ार करते

एक देह वहां है

पर उसे वो अपना मान नही रही

19 comments:

admin said...

एहसास की इंतेहा है आपकी इस छोटी सी कविता में। इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Vinay said...

बहुत गहरी संवेदना

----
गुलाबी कोंपलें

Unknown said...

mohabbat isee ka naam hai guru....

yahan ek aur ek na do hota hai, na gyarah hota hai aur na hi ek hota hai ....mohabbat me toh ek aur ek ziro hota hai...arthat shoonya

TOH TAAKTE RAHO SHOONYA ME AUR KARO MAZA MOHABBAT KA...ha ha ha ha

कंचन सिंह चौहान said...

sundar....!

Himanshu Pandey said...

देंह और मन का रिश्ता अजीब है । बेतरह कसकता हुआ । आभार प्रविष्टि के लिये ।

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

रुह के इन्तजार का एहसास अपने मे सारी सम्वेदना लिये हुये है

mark rai said...

wakai aapne kaaphi sunder blog bana rakha hai...aaker kaaphi achchha laga..

Alpana Verma said...

चंद पंक्तियों में तन-मन की कशमकश को बखूबी व्यक्त किया है.

Anonymous said...

कितना डूबकर लिखा है आपने.....अनुपम....

साभार
हमसफ़र यादों का.......

vandana gupta said...

kya kahun................nishabd hun.

dil ko andar tak bindh gayi.

अर्चना तिवारी said...

om ji sunder....maine galti sudhaar li 'jindgi jeena hai' comment ke lie dhanywaad

संध्या आर्य said...

एहसासो को कुट-कुटकर भर दिया है आपने इस छोटी सी रचना मे ............शायद यही प्रकृति होती है रूह और शरीर का..........

बहुत ही खुबसूरत......

संध्या आर्य said...
This comment has been removed by the author.
Yogesh Verma Swapn said...

wah wah wah. anupam.

दिगम्बर नासवा said...

गहरे एहसास कराती शशक्त रचना............. क्या कहा है.........सच में किसी भी देह को अपना कैसे मन ले वो रूह जो किसी दूसरी देह को भी प्यार करती है

डिम्पल मल्होत्रा said...

boht udas kavita...

रविकांत पाण्डेय said...

सुंदर भाव हैं। बिल्कुल सजीव चित्रण।

Prem Farukhabadi said...

baat kahne ki kala kavi ka vyaktiv paribhashit karti hai. dil se dhanybaad.

निर्मला कपिला said...

मौन के घर मे ऐसी ही संवेदनायें उगती हैं और कहीं गहरे मे कुछ एहसास दे जाती हैं आभार््