वो सारे सामान ले आई थी
लौटा देने के लिए।
वो हमारी आखरी तय मुलाक़ात थी
जिसमे उसे मेरा दिया
सब कुछ लौटा देना था
और फ़िर
एक लंबे गहरे रिश्ते से मुंह फेर लेना था
उसे खुरच देने थे
मेरी यादों के सारे निशान
समय की देह से
और मुझे अजनबी दुनिया मैं फेंक कर
खाली हो जाना था
निकाल कर रख दिए उसने
एक-एक कर सारे सामान
और उनके साथ वे सब ख्वाब भी,
जो आँखों से निकालते वक्त
नमकीन हो गए थे.
फिर न जाने कितनी देर
हम भींगते कमरे में बैठे रहे
और आखिर में
जब निकलने का वक़्त हुआ
तो इतनी तेज बारिश कि...
आखिरकार उस तेज बारिश में हीं जाना हुआ
मैंने उसके दुपट्टे के कोने में
शगुन के एक सौ एक रुपये बाँध दिए और
उसने निकलने से पहले मेरे पैर छू लिए।
19 comments:
आखिर में जब निकलने का वक़्त हुआ
तो इतनी तेज बारिश कि...
ज़ज्बात को आपने तो इतनी गहराई से छुआ है. ओम जी उस लेखनी को सलाम कहने को जी चाहता है.
बहुत खुब!!
ओम जी,मन के भीतर की पीड़ा को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई स्वीकारें।
और मुझे अजनबी दुनिया में
फेंक कर खाली हो जाना था
......................................................................
जिन्दगी रिश्तो से भरी होती है .........पर सभी रिश्तो की गहराई का पैमाना अलग अलग होता है यानि कि कुछ रिश्ते छिछ्ले होते है तो कुछ उथले तो कुछ गहरे .......तीनो तरह के पैमाने मे कोई न कोई रिश्ता होता ही है भले ही रिश्ता का रुप अलग अलग हो सकता है,पर रिश्तो से खाली नही हो सकता है इंसान.........
रिश्तो का पैमाने पर होना दोनो पक्ष पर निर्भर करता है ...........रिश्ते मे गहराई के लिये लाने के लिये पेशेन्स का अहम रोल होता है........निश्चय ही गहरे रिश्ते जीवन मे उर्जा,प्यार,हिम्मत,साकारात्मक सोच आदि सब देते है ..............
कोई भी गहरा रिश्ता किसी को भी अकेला नही छोड सकती............वह हमेशा सभी मौसमो मे साथ साथ ही होता है ..............
रिश्ते दूर होते है तो दर्द होता है ...............वह दर्द ठीक दम घुटने जैसा होता है ................रिश्तो से मिली पीडा भी कुछ ऐसा ही दर्द देता है कि एक क्षण न जाने कई बार दम घोट देती है ............पर रिश्ते से आप मुक्त नही हो पाते है.....
......कुछ रिश्ते रिशते रहते है पर खाली नही होते.........दूर हो जाने पर भीशरीर पर गाँठ जैसे होते है जो मद्धम मद्ध्म दर्द के साथ ........
इन सारी चीजो के बावजूद ......आपकी कविता की जादू ज्यो का त्यो बरकरार है ............
बहुत सुन्दर .......सम्वेदंशील रचना ......बधाई
मन की व्यथा व उसका जाना दिल की गहरायी तक उतर गया ।
मैंने उसके दुपट्टे के कोने में
शगुन के एक सौ एक रुपये बाँध दिए और
उसने निकलने से पहले मेरे पैर छू लिए....
यहा सम्बन्ध एक दुसरे का प्यारा लगा
निकाल कर रख दिए उसने
एक-एक कर सारे सामान
और उनके साथ वे सब ख्वाब भी,
जो आँखों से निकालते वक्त
नमकीन हो गए थे.waqate rukhsat wo chup rahe lekin ankho pe kajal fail gya...
ओमजी बहुत गहरे भावों मे दिल के दर्द को शब्दोम से सीँचा है यही भाव तो ले जाते हैं मौन के खाली घर मे----तभी तो बहती है काव्यधारा बहुत सुन्दर कविता बधाई---वैसे ऐसी मार्मिक अभिव्यक्ति पर बधाई कैसी हाँ शुभकामनायें जरूर दे सकती हूँ----तकि--कुछ देर के लिये मौन के खाली घर से वापिस लौटा जा सके
निकाल कर रख दिए उसने
एक-एक कर सारे सामान
और उनके साथ वे सब ख्वाब भी,
जो आँखों से निकालते वक्त
नमकीन हो गए थे.
om ji bahut gahre doob gaye hum bhi is kavita men, kavita kya hai , poori film hai.
वाह,ओम जी
बहुत अच्छा व्यक्त किया आपने,
गहरे रिश्तों के बीच पनपने वाली दूरियों और उसके बाद भी कहीं प्रेम का अंकुर रह जाना, यही है रिश्तों का सच..बहुत खूबसूरती के साथ प्रतिबिम्बित किया है आपने..साधुवाद.
kya baat hai.Bahut khoob.lagta hai kavita likhte waqt bahut hi gahrai ko mahsoos kiya hai aapne.
Navnit Nirav
बहुत खूब !!
बहुत सुन्दर भाव....लाजवाब. कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें !!
बहुत गहरी भावपूर्ण रचना.
बहुत ही ख़ूबसूरत और उम्दा रचना और दिल की गहराई से लिखा है आपने ! एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई!
is rachna ko padh ke lagta hai ki gulzaar sa'ab ji ki "mera kuch saman" ka purush paksh mukmill hua chahata hai....
वो हमारी आखरी तय मुलाक़ात थी
जिसमे उसे मेरा दिया
सब कुछ लौटा देना था
और फ़िर
एक लंबे गहरे रिश्ते से मुंह फेर लेना था
behteerin....
वो हमारी आखरी तय मुलाक़ात थी
जिसमे उसे मेरा दिया
सब कुछ लौटा देना था
और फ़िर
एक लंबे गहरे रिश्ते से मुंह फेर लेना था...
हृदय से फूटी अभिव्यक्ति ....बधाई
कभी अहसास के ऐसे पलों में मैने भी लिखा था
भूलना गर मुमकिन होता
तो मैं
तुम्हे भूलने से पहले
खुद को भूलता
ओम जी गज़ब का ताल मेल है आपकी भाषा और भावः में...आपकी लेखनी को नमन...अत्यंत प्रभावशाली रचना...मेरी बधाई स्वीकारें...
नीरज
kavita ki bulandi ka ehsaas karaati kavita !
is kavita k liye
vishesh badhaai !
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