राह में पूरी हुई
तलाश मंजिल की
मिल गयी तेरी उँगलियाँ
थाम कर चलने के लिये
मंजिल या मोकाम में और क्या होता है
सिवाए इस एहसास के
कि कोइ है
थामने के लिए
गर कभी लम्हें लड़खडायें
कि कोई है
जिसके कांधे पे अपना वजूद रख दो
तो और बढ़ जाए
कि कोई है
जिसकी हथेली में क्षितिज रखा जाए
तो वो और नूरी हो जाए
कि कोई है
जिसकी आँखों से
बहा जा सकता है धार बनकर
कभी मौका हो तो
और क्या होता है मंजिल या मोकाम में !
शुक्रिया
इस विराट सृष्टि का
जिसमे ये सब घटित हुआ
शुक्रिया
उस राह का
जिस पर वो राह मिली
शुक्रिया
उस तलाश का
जिसने खोजी मंजिल
और सबसे ज्यादा
शुक्रिया तुम्हारा
जो मेरे हाथ अपने हाथ में आने दिये।
21 comments:
talaash manzil ki gar rah me hi poori ho jaaye
yaani ungliyan thaam kar
saath chalne waala koi mil jaaye
to safar saral ho jata hai
man itnaa taral ho jata hai ki
kisi ki aankh se baha ja sake....
ye kaha ja sake....
haan tum !
haan haan tum !
tum hi toh ho jahaan meri talaash poorna hoti hai
_________waah
waah waah waah waah waah waah
BADHAI !
बहुत बढिया !!
बहुत सुन्दर!!
बहुत बढ़िया
---
डायनासोर भी तोते की जैसे अखरोट खाते थे
कि कोई है
जिसकी आँखों से
बहा जा सकता है धार बनकर
कभी मौका हो तो
बेहतरीन प्रस्तुति ।
सुन्दर अभिव्यक्ति
कि कोई है
जिसकी आँखों से
बहा जा सकता है धार बनकर
वाह...अद्भुत अभिव्यक्ति...नमन है आपकी सोच और लेखनी को ओम जी...क्या लिखते हैं आप...वाह...वा...मेरी बधाई.
नीरज
कमाल है!!
सच कहा ......... मंजिल और मुकाम से ज्यादा सफ़र का आनंद है.......... और वो भी जब कोई तामने वाला हो साथ में......... बहूत ही लाजवाब लिखा है........ सहज शब्दों से बुनी रचना सीदे दिल में उतरती है
ओ प्यार तेरी पहली नज़र को सलाम... दिल से निकालने वाली मंज़िल का शुक्रिया. उस वक़्त, उस नज़र, उस घड़ी को सलाम...
याद आया.. भाई जान... आपकी कविता पढ़कर यही गीत याद आया....
कि कोई है
जिसके कांधे पे अपना वजूद रख दो
तो और बढ़ जाए
कि कोई है
जिसकी हथेली में क्षितिज रखा जाए
तो वो और नूरी हो जाए
कि कोई है
जिसकी आँखों से
बहा जा सकता है धार बनकर
कभी मौका हो तो
और क्या होता है मंजिल या मोकाम में !
अब इस अभिव्यक्ति पर शब्दों मे तो कुछ कहा नहीं जा सकता (वो)वो कोई है जो समझ सकता है और वही जानता है--- ऐसे एहसास बहुत ही बडिया और भवमय रचना है बधाई
khubsoorat ehasaso me dubi kawita........
NIRMALA KAPILA JI ki baato se mai bhi hu sahmat........ehasaso ke kshitij par pasari huee kawita..............jo purnbhawmay hai..........badhaee
शुक्रिया
इस विराट सृष्टि का
जिसमे ये सब घटित हुआ
शुक्रिया
उस राह का
जिस पर वो राह मिली
शुक्रिया
उस तलाश का
जिसने खोजी मंजिल
bhaut umda
कि कोई है
जिसकी आँखों से
बहा जा सकता है धार बनकर
कभी मौका हो तो
komal shabdon ke saath bahut sunder ehsaas...wah
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
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आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
'कि कोई है...'
बहुत खूब !
शुक्रिया
उस तलाश का
जिसने खोजी मंजिल
और सबसे ज्यादा
शुक्रिया तुम्हारा
जो मेरे हाथ अपने हाथ में आने दिये
अत्यंत सहज शब्दों द्बारा बहुत ही गहरी बात ...
शुभकामनाएं !!!
आज की आवाज
शुक्रिया
उस तलाश का
जिसने खोजी मंजिल
और सबसे ज्यादा
शुक्रिया तुम्हारा
जो मेरे हाथ अपने हाथ में आने दिये.....
bhai saab laajbaab likha hai....barbar padhne ko man karta hai...
om ji , tarashe hue sadharan shabdon ka lajawaab prayog/ poori rachna behatareen,,,,,,,,,,,,,kahan se chunun kahan na chunu..........sabhi panktian..........noorie.
albela ji ki kavitatmak pratikriya ke liye unka bahut shukriya. kuch sahyatri niyamit roop se hausla badha rahen hain mera, jo mujhe aur achchha karne ke liye oorja de rahi hain. kuch naye log jud rahe hain, main un sabka swagat aur dhanyavad karta hoon.main aap sabaka tahe dil se shukriya ada karta hoon aur dua karta hoon ki aap sabko raah men hin mile manjil.
और सबसे ज्यादा
शुक्रिया तुम्हारा
जो मेरे हाथ अपने हाथ में आने दिये।
बहुत भावः पूर्ण रचना साधुवाद ऐसे सृजन के लिए
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