प्रिय आर्यजी सुन्दर अभिव्यक्ति है,पर मेरे ख्याल मेम इसे यहीं खत्म हो जाना चाहिये था असल में कविता अपने आप सब कुछ नही कहती अपितु श्रोता या पाठक से अपनी बात कहलवाने में सक्षम होती है, सुबह देखा तो वो और लहलहा रहा था इससे खुद-खुद ही आभाष होता है कि आंसुओं ने अपना काम कर दिया
अच्छा लिख रहे हैं लिखते रहें ,अनेकानेक शुभकामनाएं http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर गज़ल या फिर http//:katha-kavita.blogspot.com पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें कविता
8 comments:
सारी रात
मै उस नीम के
गले लग के रोती रही
जिन्दगी कुछ ऐसी ही होती है.....
बहुत बहुत ही अच्छी रचना ......
बहुत उम्दा रचना! बधाई।
सारी रात
मैं उस नीम के
गले लग के रोती रही
सुबह देखा तो
वो और लहलहा रहा था
प्रिय आर्यजी सुन्दर अभिव्यक्ति है,पर मेरे ख्याल मेम इसे यहीं खत्म हो जाना चाहिये था असल में कविता अपने आप सब कुछ नही कहती अपितु श्रोता या पाठक से अपनी बात कहलवाने में सक्षम होती है,
सुबह देखा तो
वो और लहलहा रहा था
इससे खुद-खुद ही आभाष होता है कि आंसुओं ने अपना काम कर दिया
अच्छा लिख रहे हैं लिखते रहें ,अनेकानेक शुभकामनाएं
http//:gazalkbahane.blogspot.com/
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कविता
बहुत खूब ओम जी। गहरी बात। लेकिन श्याम सखा जी की बातों से बहुत हद तक मैं भी सहमत हूँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
याद है तुम्हे उस रोज मेज पे बैठे बैठे
सिगरेट की डब्बी पे मैंने स्केच बनाया था ..
गुलज़ार याद आये ....
lajawaab rachna............gahre bhav
क्या बात है ओम जी......... बहुत खूब लिखा है......... निःशब्द कर दिया आपकी भावनाओं ने
bahut hee sundr bhav.
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