ख्वाब बुनने में
कभी उलझ जाए कोई ताना,
छूटने लगे कोई सिरा कभी
या फ़िर घिस जाए, टूट जाए
कभी महसूस हो जरूरत
तो संकोच मत करना
अवश्य मांग लेना मेरी उँगलियों की मदद
तुम्हारे ख्वाब के ताने
नही होंगे मेरे न सही,
पर उन तानो पे
मेरा स्पर्श
मुझे बचाता रहेगा
अपने होने की व्यर्थता के एहसास से
21 comments:
बहुत उम्दा रचना!!
ओम जी,
बड़ी नाजुक सी रचना, शब्दों का खूबसूरत ताना-बाना भावनाओं को एकवट करता हुआ।
बधाई,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत सुंदर...ये पंक्तियां तो जहन को छूती हुई सी गुजरीं...भावों की खुश्बू छोड़ते हुए...
बहुत सुन्दर काव्य
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गुलाबी कोंपलें
तुम्हारे ख्वाब के ताने
नही होंगे मेरे न सही,sunder or sache ahsaas..
Om ji bahut hi achi rachna likhi hai aapne
komalta aur nazuki ki koi paribhasha hai toh vah aapki bhaasha hai omji,
badhaai !
kya khoob likha hai.......umda rachna
दिलचस्प.....आप भी गुलज़ार भक्त मालूम होते है
वाह..............मांग लेना मेरी उंगलियाँ ख्वाब बुनने में...........बेहद खूबसूरत...........प्रेम की पराकाष्ठा.........
अनुराग के इस राग मे,मानो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वीणा के तानो पर एक आन्न्दमयी राग बहे जा रही हो........भरोसे को स्पर्श करती हुई....सुन्दर रचना
बहुत ही शानदार.बधाई.
ओम जी अपकी कवितायें इतनी भावमय होती हैं कि दिल को छू लेती हैऔर आदमी संवेदनाओं के सागर मे गोते खाने लगता है आभार्
"मांग लेना मेरी उंगलियों की मदद"
बहुत सुंदर विचार हैं। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
sunder abhivyakti omji, badhai.
बहुत खुब.. बधाई.
bahut behtareen...gazab ka likha hai aapne
ख्वाब बुनने में
कभी उलझ जाए कोई ताना,
छूटने लगे कोई सिरा कभी
या फ़िर घिस जाए, टूट जाए
बिलकुल गुलज़ार टाइप कविता है
बहुत सुन्दर
वीनस केसरी
बहुत ही सुंदर भाव के साथ आपने ये ख़ूबसूरत और उम्दा रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है !
तुम्हारे ख्वाब के ताने
नही होंगे मेरे न सही,
पर उन तानो पे
मेरा स्पर्श
मुझे बचाता रहेगा
अपने होने की व्यर्थता के एहसास से
क्या कहने ओम जी,
सादगी से कहने का आपका अन्दाज़ बहुत प्यारा है
ख्वाब का ताना बाना बुनाना बहुत कटिन है, पर बुन रहा है तो ताना बाना उँगलियों की मदद ले लेना चहिये
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