उफनते समंदर में
डाल दिया ख़ुद को
उसकी आगोश में
डाल दिया ख़ुद को
उसकी आगोश में
गहरे डूबने के लिए
उसके पानी में
हमेशा कुछ छलकता दीखता था
मुझे लबालब करने को आतुर
सो उसकी अथाह उफनते पानीदार आगोश में
उसके पानी में
हमेशा कुछ छलकता दीखता था
मुझे लबालब करने को आतुर
सो उसकी अथाह उफनते पानीदार आगोश में
सरक गया मैं
पर उसने भी बहा कर
किनारे कर दिया मुझको
पर उसने भी बहा कर
किनारे कर दिया मुझको
15 comments:
बेहतरीन रचना बधाई.
उफ़ ये तो inthaa हो गयी..जी बताइये अब क्या किया जाए...हा..हा..हा..
बहुत ही सुन्दर...
अच्छी रचना .
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! लिखते रहिये!
एक बेहतरीन उम्दा रचना..बधाई ओम भाई!!
usne bhi bha ke kinare pe kar diya mujhko....boht sunder...
प्यार ऐसी चीज होती है जिसमे डुबाना भी बहुत अच्छा लगता है .....पर समन्दर भी क्या करे उसमे निगलने की झमता नही होती है.........
एक खुबसूरत रचना......
बेहतरीन अभिव्यक्ति .........
हमेशा की तरह........
bahut khoob om ji , rachna damdaar lagi.
क्या बात कही है आपने...वाह...ओम जी...वाह..
नीरज
doobane ki nahin samndar se tairne ki chaah kahiye ....fir samandar ki lahrein aapko kinare nahin chodengi.....bahut sundar likhtein hain aap :)
सबसे पहले ॐ जी आपका शुक्रिया की आप मेरे ब्लॉग पे आयें और इतना बढ़िया कमेन्ट किया....उसने भी किनारे कर दिया मुझे मुझको...प्रेम के चाशनी में डूबी हुई रचना है!!!!!!!! बधाई...आगे भी ब्लॉग में मिलना होगा..
om जी........... आपका लिखा किसी और दुनिया में ले जाता है hameshaa.......... गहरी सोच से nukalti है आपकी kavitaa........ लाजवाब है ये भी आपकी shaili में
athah ufante paanidar aagosh ka jawab nahin bhai !
atyant anoothi kalpna ..........
badhaai !
बेहतरीन रचना.बधाई !!
सो उसकी अथाह उफनते पानीदार आगोश में
सरक गया मैं
पर उसने भी बहा कर
किनारे कर दिया मुझको
bahut khoob...!
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