Tuesday, June 23, 2009

बिना नज़्म के तुम्हें कैसे छुऊं !!

कभी-कभी
कोई भी नज़्म
उगा कर नही लाती सुबह

आ के बैठ जाती है
आँगन में अनमनी सी
जाने क्या सोंचती हुई
बैठी रहती है देर तक यूँ हीं

चाय पी कर भी ताज़ी नहीं होती ये सुबहें

उन रातों को,
जिनकी वे सुबहें होती हैं
नज़्म के बीज नही गिरते
आसमान खाली रहता है तारों के पेड़ से
और बादल भरे हुए

ऐसी सुबहों को
मैं बहुत परेशां रहता हूँ
कि बिना नज़्म के तुम्हें कैसे छुऊं !!

22 comments:

Unknown said...

नज़्म के बीज नही गिरते
आसमान खाली रहता है तारों के पेड़ से
और बादल भरे हुए
___________kya baat hai !
_______omji kya baat hai !
nazm padh kar bada sukh mila...
anoothe andaz ki jhalak dikhaadi aapne
BADHAAI !

सदा said...

कभी-कभी
कोई भी नज़्म
उगा कर नही लाती सुबह

बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

दिगम्बर नासवा said...

नज़्म के बीज नहीं गिरते................ और नज़्म उगती नहीं कभी कभी............ कितना संजीदा ख्याल है.......बहुत ही सीधे शब्दों में बोलती हुयी रचना है

Atmaram Sharma said...

सुंदर भाव हैं.

Science Bloggers Association said...

ख्‍याल कविता की रूह होता है। और आपके विचार देख कर कभी कभी आपसे ईर्ष्‍या होने लगती है। बहुत शानदार कविता।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

M VERMA said...

बहुत खूब ओम जी नज़्म के हाथो नज़्म को छूकर एक नई नज़्म का जन्म होता है. ज़िन्दगी भी तो एक नज़्म है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये साधुवाद

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

sundar rachana

MANVINDER BHIMBER said...

आ के बैठ जाती है
आँगन में अनमनी सी
जाने क्या सोंचती हुई
बैठी रहती है देर तक यूँ हीं
बेहतरीन प्रस्‍तुति

रंजना said...

वाह !!!..लाजवाब शब्द चयन,बिम्ब विधान और भावाभिव्यक्ति......लाजवाब !!!!!

सुन्दर रचना के लिए बधाई...

संध्या आर्य said...

ऐसी सुबहों को
मैं बहुत परेशां रहता हूँ
कि बिना नज़्म के तुम्हें कैसे छुऊं !!

EK BAHUT HI KHUBSOORAT RACHANA.........

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर रचना.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह....नये आयाम..नये प्रतिमान..

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

नज़्म के बीज नही गिरते
आसमान खाली रहता है तारों के पेड़ से
और बादल भरे हुए
shabd nahi mi rahe tareef ke liye om ji ati uttam

मधुकर राजपूत said...

najm ke kya kehne bina najm likhe najm likhe gaye.

Neeraj Kumar said...

बिना नज़्म के तुम्हें कैसे छुऊं ...

ये कैसी झिझक है...
कवि हैं...
कविता करते हैं...

Yogesh Verma Swapn said...

behatareen rachna. wah.

ओम आर्य said...

सभी को मेरा सादर नमन!

vandana gupta said...

bina nazm ke tumhein kaise chuoon.......ye shabd hi jadoo kar gaye........sara ras hi in shabdon mein aa gaya kavita ka.

Anonymous said...

बहुत सुन्दर

Unknown said...

चाय पी कर भी ताज़ी नहीं होती ये सुबहें

उन रातों को,
जिनकी वे सुबहें होती हैं
नज़्म के बीज नही गिरते

adbhoot....


my id is not working so sending this comment from my friend's id.

-Darpan Sah
(http://darpansah.blogspot.com)

Urmi said...

बहुत ही ख़ूबसूरत एहसास के साथ आपने ये शानदार और उम्दा रचना लिखा है! मुझे बेहद पसंद आया! सबसे अच्छी लगी मुझे रचना का नाम "बिना नज़्म के तुम्हे...." ! क्या बात है ! लाजवाब रचना के लिए बधाई!
एक नया ब्लॉग बनाया है आपका सुझाव चाहिए!
http://amazing-shot.blogspot.com

कुश said...

नज़्म वाकई उम्दा है पर मुझे तो आपके ब्लॉग के हेडर में लगी इमेज भा गयी है.. बहुत ही बढ़िया है