गुजरता रहेगा वक़्त
पर मौसम टंगे रहेंगे
पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर
आर पार जाती रहेंगी साँसें पर
ह्रदय पर के दबाब कम नही होंगे
पसरती रहेगी धूप
छत और आंगन के कंधों पर
पर छू नही पायेगी वे देह की सीलनो को
बहुत सारा पानी बहता रहेगा पर
रक्त टिका रहेगा वहीँ
जहाँ कटे थे रिश्ते
लिखी जाने वाली किताबें
तेरे किरदार के इंतज़ार में
गुमसुम बैठी रहेंगी
तेरे लौटने तक
सब कुछ टंगा रहेगा
मेरे साथ दीवार की खूंटी पर
22 comments:
waah waah
patjhadi paaton ka mausam par tangaav
hriday ka dabaav
aur deh ki seelan
aapka ek ek shabd kavita ke roop-swaroop
saundryavardhan karta hai
omji, kya baat hai !
kis bodhi vriksh ke neeche baithe ho bhai,
zaraa hamen bhi toh bataao...
________bahut umda kavita ..badhaai !
बहुत सारा पानी बहता रहेगा पर
रक्त टिका रहेगा वहीँ
जहाँ कटे थे रिश्ते
बहुत ही बढि़या रचना ।
गुजरता रहेगा वक़्त
पर मौसम टंगे रहेंगे
पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर
kya baat hai....bahut sunder likha hai
दिन ब दिन छाते जा रहे हो मियाँ....
और... मायने भी गहरे होते जा रहे है... बहुत अच्छा लिख रहे है आप...
फलो-फूलो, फलो-फूलो, फलो-फूलो
खैर छोड़ो...
har line mein adbhut ahsaas dabe huye hain jo dil ko choo jate hain ...........ab isse aage kya kahun.........behtreen.
वाह कितनी ही लाजवाब रचनाएँ पढ़ चुका हूँ अब तक आपके ब्लॉग पर और हर बार नए एहसास , नए लम्हों को लेकर आप इतना खूबसूरत ताना बाना बुनते हैं की मन खो जाता है ................. बहूत दूर गहराईमें
तेरे लौटने तक
सब कुछ टंगा रहेगा
मेरे साथ दीवार की खूंटी पर
बहुत खूब......!! शानदार लेखन ....!!
वो आखिर लौटती क्यों नहीं .....!!
shaandaar rachna. bahut khoob.
bahut sundar!
गुजरता रहेगा वक़्त
पर मौसम टंगे रहेंगे
पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर
आर पार जाती रहेंगी साँसें पर
ह्रदय पर के दबाब कम नही होंगे
तेरे लौटने तक
सब कुछ टंगा रहेगा
मेरे साथ दीवार की खूंटी पर
बेहद सम्वेदनशील पंक्तियाँ ..............
बहुत सारा पानी बहता रहेगा पर
रक्त टिका रहेगा वहीँ
जहाँ कटे थे रिश्ते
शब्द भी इंकार कर रहे है .........क्या कहे दर्द ही दर्द रिस रहा है इन पंक्तियो से ..........
लिखी जाने वाली किताबें
तेरे किरदार के इंतज़ार में
गुमसुम बैठी रहेंगी
wah wah kya likha hai aapne.......
really philosophical......
aapke comments ka main shukraguzzar hoon......... aise padh ke mujhe ........mera hausala badhate rahiye.....
aapke ahsaas lajwaab hai....har kavita ek kahani hai...
अच्छी कविता है भाई…
पांचवीं पंक्ति से ^के^ हटाया जा सकता है क्या?
Atyant bhavpurn abhivyakti.Badhai.
अच्छे भाव . अच्छी रचना
पतझर के सूखे पत्ते, शायद पत्ते सूख गये बसंत के इंतजार में, शायद कुछ नये की तलाश में........बेहद उम्दा रचना
पसरती रहेगी धूप
छत और आंगन के कंधों पर
पर छू नही पायेगी वे देह की सीलनो को
बहुत सारा पानी बहता रहेगा पर
रक्त टिका रहेगा वहीँ
जहाँ कटे थे रिश्ते
उपरोक्त पंक्तियों की रचना पर जितनी भी तारीफ की जाये कम है.
अति गहरे भाव, दिल को छूने वाले.
बधाई,
चन्द्र मोहन गुप्त
सुंदर कविता
तेरे लौटने तक
सब कुछ टंगा रहेगा
मेरे साथ दीवार की खूंटी पर
वाह....
पसरती रहेगी धूप
छत और आंगन के कंधों पर
पर छू नही पायेगी वे देह की सीलनो को
मन के सागर में बहुत गहरे उतर कर लिखते हो भाई
बहुत सुन्दर....हैं सबद सरीखे
श्याम
बहुत ही सुंदर भाव और एहसास के साथ आपकी लिखी हुई ये रचना बहुत अच्छी लगी!
गुजरता रहेगा वक़्त
पर मौसम टंगे रहेंगे
पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर
पतझड़ तो ऐसा ही है, यह भी गौर फरमाएं:
मुरझाया कुम्हलाया तन-मन
उजड़ी सेज कंटीली रातें।
सूखे पत्ते नंगी शाखें
पतझड़ में सताती रातें।।
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