Saturday, June 27, 2009

पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर !

गुजरता रहेगा वक़्त
पर मौसम टंगे रहेंगे
पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर

आर पार जाती रहेंगी साँसें पर
ह्रदय पर के दबाब कम नही होंगे

पसरती रहेगी धूप
छत और आंगन के कंधों पर
पर छू नही पायेगी वे देह की सीलनो को

बहुत सारा पानी बहता रहेगा पर
रक्त टिका रहेगा वहीँ
जहाँ कटे थे रिश्ते

लिखी जाने वाली किताबें
तेरे किरदार के इंतज़ार में
गुमसुम बैठी रहेंगी

तेरे लौटने तक
सब कुछ टंगा रहेगा
मेरे साथ दीवार की खूंटी पर

22 comments:

Unknown said...

waah waah

patjhadi paaton ka mausam par tangaav
hriday ka dabaav
aur deh ki seelan

aapka ek ek shabd kavita ke roop-swaroop
saundryavardhan karta hai

omji, kya baat hai !

kis bodhi vriksh ke neeche baithe ho bhai,
zaraa hamen bhi toh bataao...

________bahut umda kavita ..badhaai !

सदा said...

बहुत सारा पानी बहता रहेगा पर
रक्त टिका रहेगा वहीँ
जहाँ कटे थे रिश्ते

बहुत ही बढि़या रचना ।

MANVINDER BHIMBER said...

गुजरता रहेगा वक़्त
पर मौसम टंगे रहेंगे
पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर

kya baat hai....bahut sunder likha hai

सागर said...

दिन ब दिन छाते जा रहे हो मियाँ....

और... मायने भी गहरे होते जा रहे है... बहुत अच्छा लिख रहे है आप...

फलो-फूलो, फलो-फूलो, फलो-फूलो
खैर छोड़ो...

vandana gupta said...

har line mein adbhut ahsaas dabe huye hain jo dil ko choo jate hain ...........ab isse aage kya kahun.........behtreen.

दिगम्बर नासवा said...

वाह कितनी ही लाजवाब रचनाएँ पढ़ चुका हूँ अब तक आपके ब्लॉग पर और हर बार नए एहसास , नए लम्हों को लेकर आप इतना खूबसूरत ताना बाना बुनते हैं की मन खो जाता है ................. बहूत दूर गहराईमें

हरकीरत ' हीर' said...

तेरे लौटने तक
सब कुछ टंगा रहेगा
मेरे साथ दीवार की खूंटी पर

बहुत खूब......!! शानदार लेखन ....!!

वो आखिर लौटती क्यों नहीं .....!!

Yogesh Verma Swapn said...

shaandaar rachna. bahut khoob.

Prem Farukhabadi said...

bahut sundar!

गुजरता रहेगा वक़्त
पर मौसम टंगे रहेंगे
पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर

आर पार जाती रहेंगी साँसें पर
ह्रदय पर के दबाब कम नही होंगे

संध्या आर्य said...

तेरे लौटने तक
सब कुछ टंगा रहेगा
मेरे साथ दीवार की खूंटी पर

बेहद सम्वेदनशील पंक्तियाँ ..............

बहुत सारा पानी बहता रहेगा पर
रक्त टिका रहेगा वहीँ
जहाँ कटे थे रिश्ते

शब्द भी इंकार कर रहे है .........क्या कहे दर्द ही दर्द रिस रहा है इन पंक्तियो से ..........

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

लिखी जाने वाली किताबें
तेरे किरदार के इंतज़ार में
गुमसुम बैठी रहेंगी

wah wah kya likha hai aapne.......
really philosophical......

aapke comments ka main shukraguzzar hoon......... aise padh ke mujhe ........mera hausala badhate rahiye.....

डिम्पल मल्होत्रा said...

aapke ahsaas lajwaab hai....har kavita ek kahani hai...

Ashok Kumar pandey said...

अच्छी कविता है भाई…
पांचवीं पंक्ति से ^के^ हटाया जा सकता है क्या?

sandhyagupta said...

Atyant bhavpurn abhivyakti.Badhai.

समयचक्र said...

अच्छे भाव . अच्छी रचना

Anonymous said...

पतझर के सूखे पत्ते, शायद पत्ते सूख गये बसंत के इंतजार में, शायद कुछ नये की तलाश में........बेहद उम्दा रचना

Mumukshh Ki Rachanain said...

पसरती रहेगी धूप
छत और आंगन के कंधों पर
पर छू नही पायेगी वे देह की सीलनो को

बहुत सारा पानी बहता रहेगा पर
रक्त टिका रहेगा वहीँ
जहाँ कटे थे रिश्ते

उपरोक्त पंक्तियों की रचना पर जितनी भी तारीफ की जाये कम है.
अति गहरे भाव, दिल को छूने वाले.

बधाई,

चन्द्र मोहन गुप्त

योगेन्द्र मौदगिल said...

सुंदर कविता


तेरे लौटने तक
सब कुछ टंगा रहेगा
मेरे साथ दीवार की खूंटी पर


वाह....

gazalkbahane said...

पसरती रहेगी धूप
छत और आंगन के कंधों पर
पर छू नही पायेगी वे देह की सीलनो को

मन के सागर में बहुत गहरे उतर कर लिखते हो भाई
बहुत सुन्दर....हैं सबद सरीखे
श्याम

Urmi said...

बहुत ही सुंदर भाव और एहसास के साथ आपकी लिखी हुई ये रचना बहुत अच्छी लगी!

Smart Indian said...

गुजरता रहेगा वक़्त
पर मौसम टंगे रहेंगे
पतझड़ के उन्ही सुखे पत्तों पर

पतझड़ तो ऐसा ही है, यह भी गौर फरमाएं:
मुरझाया कुम्हलाया तन-मन
उजड़ी सेज कंटीली रातें।
सूखे पत्ते नंगी शाखें
पतझड़ में सताती रातें।।

Anonymous said...
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