Sunday, June 7, 2009

बदन पे हरा उगा नही कुछ जाने कबसे...

कितना तय होता है
लौटना
हरे पत्तों का, पेड़ों पर
पतझड़ के बाद

पेड़ अच्छे हैं
बहार का इंतज़ार
उनके लिए
इतना लंबा और अनिश्चित नही होता ...

जाने कबसे बैठा हूँ
उसकी आमद के इंतज़ार में
बदन पे हरा उगा नही कुछ जाने कबसे...

16 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

नपे-तुले शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति।
ओम आर्य जी
बधाई स्वीकार करे।

Manjit Thakur said...

ज़बरदस्त अभिव्यक्ति..बधाई

Unknown said...

bhai waah
baat hai aapki baat men.............
BADHAI

समय चक्र said...

बहत बढ़िया रचना .
आपकी पोस्ट चर्चा समयचक्र में

डॉ. मनोज मिश्र said...

जाने कबसे बैठा हूँ
उसकी आमद के इंतज़ार में ...
बहुत भावपूर्ण लाइनें .

संध्या आर्य said...

ek khubsoorat abhiwyakti.....

कडुवासच said...

... bahut khoob ... prabhaavashaali abhivyakti !!!!

Yogesh Verma Swapn said...

बदन पे हरा उगा नही कुछ जाने कबसे...

kamaalki pankti hai. wah . om ji mujhe to bahut pasand aai.

Deepak Tiruwa said...

lajawab rachna hai mitr...bejod

Sajal Ehsaas said...

dard aur bhaav bhari ek achhi rachna...shabdo ka istemaal achha hai...

www.pyasasajal.blogspot.com

admin said...

बहुत गजब की बात कह दी है आपने। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

waah .....

M Verma said...

बेहद खूबसूरत रचना --
तय का न लौ
टना वाकई टीस पैदा करता है

बधाई

महुवा said...

too gud.....!!

दिगम्बर नासवा said...

जाने कबसे बैठा हूँ
उसकी आमद के इंतज़ार में
बदन पे हरा उगा नही कुछ जाने कबसे...

सदके ओम जी..............इस लाजवाब अभिव्यक्ति की.............

ओम आर्य said...

आप सबका शुक्रगुजार हूँ. मेरे ब्लॉग पे आने, कमेन्ट करने और हौसलाफजाई के लिए.इसी तरह आते रहें. और मेरी अभिव्यक्ति को आकाश देते रहें. बहुत-बहुत धन्यवाद.