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Tuesday, July 6, 2010

किसी भी तरह इस सन्नाटे की पकड़ ढीली हो...

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हम भरे हुए बादल हैं
इस इंतज़ार में कि
कस कर भींचें जाएँ

हम बरसने को प्यासे हैं

हमने बहुत आसमान नापें हैं
आवारों की तरह
भदभदा जाने की चाह में

और रोके भी रखा है खुद को
कहीं भी भदभदा जाने से

हम इन्तिज़ार में हैं
क्यूंकि बीता वक़्त बीत गया है
और आने वाला अभी पहुंचा नहीं है

हम हैं बेवक्त बरस जाने
और बेमतलब भदभदा जाने से
जानबूझ कर बचते हुए

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लहरों की आवाजों में खराशें हैं
गला रुंधा सा लगता है
और सारे शब्द सिथुए हो गए हैं

मैं इन्तिज़ार में हूँ
कि वो आये कहीं से भी,
चाहे सहलाये , चाहे बातें करे
या फिर झकझोड़ दे इस सन्नाटे को

वो आये कि
किसी भी तरह
इस सन्नाटे की पकड़ ढीली हो

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बंद कमरे में
पालथी मारे बैठे हैं
साँसों के दो पुलिंदे

कोई भी उठ कर
दरवाजे नहीं खोल रहा

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Tuesday, June 8, 2010

शहर के जिस हिस्से में आज बारिश थी

शहर के जिस हिस्से में आज बारिश थी
वहां आसमान
कई दिनों से गुमसुम था

चुपचाप,
जिंदगी से बाहर देखता हुआ एकटक

पर आज बारिश थी
और शहर का
वो गुमसुम हिस्सा
एकाएक अब पानी पे तैरने लगा था
जैसे कि डूब कर मर गया हो

पर प्यार था कि जिए जाने की जिद में था
और इसी जिद में
सेन्ट्रल पार्क के एक बेंच पे
एक नामुमकिन सी ख्वाहिश बैठी हुई थी
कि कहीं से भी तुम चले आओ,
और भर लो अपने आगोश में इस बारिश को

उधर आसमान का दिल भी
शायद बहुत भर गया था
या फिर
कहीं आग थी कोई
जो बारिश को बुझने हीं नहीं दे रही थी

शाम के घिर आने के बहुत देर बाद तक
कुछ बच्चे खेल रहे थे कागज़ के नाव बना कर,
छप-छप कर रहे थे पानी पर
उन्हें नहीं था मालुम अभी कि मुहब्बत कैसी शै है

वे नाव, शहर के उस हिस्से से
अभी ज्यादा जिन्दा थे

Thursday, February 25, 2010

अच्छी चीजों का इंतज़ार कितना अच्छा होता है न !

वो ठीक मेरे
एहसास से लग कर सोती है आजकल
और मैं
अपनी नींद में उसे देखते हुए

कभी-कभी जब

जाग जाते हैं मेरे एहसास उससे पहले
तो रोकता हूँ उनका उठना
ताकि नाजुक नींद टिकी रहे उसकी
और मैं देख सकूँ वही सब जाग कर
जो देखता हूँ सोते हुए

उसकी नींद यूँ लगती है जैसे
भीतर हीं भीतर
कर रहा होऊं मैं
उसके ख्वाब से कोई ठिठोली
और उतर रही हो लाली उसके गाल पर

कभी-कभी हम रजाई बन जाते हैं
और समेटते हैं सिहरन
एक दूसरे की,
हमें देख कर सूरज भी आसमान लपेट लेता है
और सोया रहता है देर तक

मैं चाहता हूँ कि
वो जागे कभी गर मुझसे और सूरज से पहले
तो उठे नहीं बिस्तर से
बस करवट लेकर कविता में आ जाए

ताकि सबसे सुन्दर प्रेम कविता लिखी जा सके उस दिन

और मैं जानता हूँ कि
ये जरा भी मुश्किल नहीं है
सिर्फ उसे पता भर लगने की देर है

पर मैं बताने के बजाय इंतज़ार करता हूँ

अच्छी चीजों का इंतज़ार कितना अच्छा होता है न !

Friday, August 14, 2009

एक कसी मुट्ठी वाली कविता

लड़की
सिक्का-सिक्का जमा कर रही है
धारदार अक्षरों और नोकीले शब्दों को
जो कभी नही रहे उसके गुल्लक में
और पिरोने की तयारी में है
एक कसी मुट्ठी वाली कविता

लड़की को मिल गया है
आसमान
जहाँ वो अभिव्यक्ति रख सके