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हम भरे हुए बादल हैं
इस इंतज़ार में कि
कस कर भींचें जाएँ
हम बरसने को प्यासे हैं
हमने बहुत आसमान नापें हैं
आवारों की तरह
भदभदा जाने की चाह में
और रोके भी रखा है खुद को
कहीं भी भदभदा जाने से
हम इन्तिज़ार में हैं
क्यूंकि बीता वक़्त बीत गया है
और आने वाला अभी पहुंचा नहीं है
हम हैं बेवक्त बरस जाने
और बेमतलब भदभदा जाने से
जानबूझ कर बचते हुए
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लहरों की आवाजों में खराशें हैं
गला रुंधा सा लगता है
और सारे शब्द सिथुए हो गए हैं
मैं इन्तिज़ार में हूँ
कि वो आये कहीं से भी,
चाहे सहलाये , चाहे बातें करे
या फिर झकझोड़ दे इस सन्नाटे को
वो आये कि
किसी भी तरह
इस सन्नाटे की पकड़ ढीली हो
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बंद कमरे में
पालथी मारे बैठे हैं
साँसों के दो पुलिंदे
कोई भी उठ कर
दरवाजे नहीं खोल रहा
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18 comments:
आखिरी वाला जबर्दस्त्त किस्म का खतरनाक है ...
Dard umad ghumad ke baras raha hai,har pankti se...!
बहुत गहरी सोच के साथ लिखी गयी रचनाएँ...
nice
हम हैं बादल बेवक्त बरस जाने से बचते हुए ...
समझदारी भी जरुरी है ...
वो आये किसी तरह की सन्नाटे की पकड़ ढीली हो ...
और इससे पहले आना कि सन्नाटा लील ना जाए किसी के अस्तित्व को
ये दर्द के बादल हैं
बंद कमरे में
पालथी मारे बैठे हैं
साँसों के दो पुलिंदे
कोई भी उठ कर
दरवाजे नहीं खोल रहा
एक बार फिर उसी रंगत मे लिखा है जो आपकी पहचान है…………………………सीधे दिल मे उतरने वाली रचनायें।
आपकी यादों के पुलिंदे पता नही कितने हैं हर एक दर्द से भरा हुया। बहुत खूब। आज कल कहाँ हैं कहीं नज़र नहीं आते। शुभकामनायें
कोई भी उठ कर
दरवाजे नहीं खोल रहा !
दिल को छु गई !
kuchh uljhi...si rachnaa
बंद कमरे में
पालथी मारे बैठे हैं
साँसों के दो पुलिंदे
कोई भी उठ कर
दरवाजे नहीं खोल रहा
वल्लाह!!
कुछ कहना जैसे कोई आहट करना है .....इन पुलिंदो को डिस्टर्ब करना !!
again check your blog not opening in mozila .....not able to comment on your last post too....
बंद कमरे में
पालथी मारे बैठे हैं
साँसों के दो पुलिंदे
कोई भी उठ कर
दरवाजे नहीं खोल रहा ..
इस नन्हे से लफ्ज़ो के टुकड़े ने सच में मौन कर दिया..आपकी इक पुरानी कविता black n white फोटो वाली सा असर रखती है ये कविता भी..
Aapke khayal, aapki kalpana, bahut khoob, bahut khoob.
अजीब सी खामोशी थी वादियो मे
जो मौसमो के सीने को खाये जा रही थी
पहाड खामोश थे
सदियो से
अपनी विशलता के विवशता मे
अंतहीन इंतजार से
उनकी आँखे पत्थरा गयी थी
और साँसे सुस्त , पर
आज भी सुरज की लाल किरणे
सुनहरा कर जाती थी
उनके अंतहीन इंतजार को !
Badal aawaara to hain, lekin samajhdaar !
हम भरे हुए बादल हैं
इस इंतज़ार में कि
कस कर भींचें जाएँ
आपके बादलों को पढ़ कर जेहन मे एक बूढ़ा आता है..जिसकी जिंदगी की बहारें उसे छोड़ कर जाते वक्त उसका सब कुछ अपने साथ ले कर गयीं..उसकी उम्र भी..और एक तन्हा उदासी और आवारा भटकन बस बची रही उसकी किस्मत मे..कितने आसमान नापने के बाद और कितना बीत चुका वक्त बिताने के बाद अब कितने किस्से हैं उसके पास सुनाने के लिये, आसमानों के दूर के किनारों की खबरें, गुजरी बहारों की दस्तानें मगर भरी दुनिया मे अकेला भटकते हुए कोई भी नही है उन कहानियों का हमगवाह बनने के लिये..आप बस एक बार उस बूढे को गले लगा कर भींच लेंगे और उम्र भर से प्यासे आँसू पल भर मे बरस जायेंगे...और दर्द की धरती फिर हरी हो जायेगी..
कितने भरे हुए प्यासे बादल बरस जाने का इंतजार करते रहते हैं हमारे आस-पास..
..
लहरों की आवाजों में खराशें हैं...vaah!
बंद कमरे में
पालथी मारे बैठे हैं
साँसों के दो पुलिंदे
कोई भी उठ कर
दरवाजे नहीं खोल रहा ..
beintahaan khubsurat
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